Sunday 17 May 2020

Shayari eBooks

शायरी के पुष्पगुच्छ से भरी इस बगिया में आप सभी का स्नेहभरा आमंत्रण 

यह पुष्पगुच्छ उसके लिए जिसके आने की उम्मीद में क्यारियाँ सजी है । 



शायरी ई-बुक्स



जीवन में जब तुम थे नहीं,
पलभर नहीं उल्लास था,
खुद से बहुत मैं दूर था
बेशक जमाना पास था ।
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होंठो पे मरुथल और दिल में
 एक मीठी झील थी,
आँखों में आँसू से सजी
इक दर्द की कंदील थी ।

लेकिन मिलोगे तुम मुझे
मुझको अटल विश्वास था,  
खुद से बहुत मैं दूर था
बेशक जमाना पास था ।


तुम मिले जैसे कुंवारी कामना को वर मिला, 
चांद की आवारगी को पूनमी अम्बर मिला | 

तन की तपन में जल गया,
जो दर्द का इतिहास था ।
खुद से बहुत मैं दूर था,
बेशक जमाना पास था ।





फिर मेरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी
फिर मेरे फेसबुक पे आ कर वो
अपना बैनर लगा रही होगी

अपने बेटे का चूम कर माथा
मुझको टीका लगा रही होगी
फिर उसी ने उसे छुआ होगा
फिर उसी से निभा रही होगी

जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सलवट हटा रही होगी
फिर एक रात कट गयी होगी
फिर एक रात आ रही होगी


हर मुसाफिर है सहारे तेरे
कश्तियां तेरी किनारे तेरे
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तेरे दामन को खबर दे कोई
टूटते रहते हैं तारे तेरे

धूप दरिया में रवानी थी बहूत
बह गये चांद सितारे

तेरे दरवाजे को जुम्बिश न हुई
मैंने सब नाम पुकारे तेरे

बे तलब आँखों में क्या-क्या कुछ है
वह समझता है इशारे तेरे

कब पसीजेंगे यह बहरे बादल
है शजर हाथ पसारे तेरे

मेरा इक पल भी मुझे मिल न सका
मैंने दिन रात गुजारे तेरे


तेरी आँखें तेरी बिनाई है
तेरे मंजर हैं नजारे तेरे
                        
 
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