आप सभी पाठकों का स्वागत है । यहाँ हम आपको उन कृतियाँ से अवगत कराना चाहते हैं, जिसे पढकर आनंद महसूस करेंगे। हिंदी साहित्य में शुरुआत से लेकर वर्तमान समय तक बहुत सारी ऐसी पुस्तकें लिखी गयी जो अत्यंत ही पठनीय एवं रोचक है। यहाँ पर कुछ पुस्तकों को उसके परिचय के साथ प्रस्तुत किया गया है, जिससे आप सभी को अपने रुचि अनुसार पुस्तक चयन में आशानी होगी ।
इस भाग में हमने अतयंत पठनीय, मजेदार 10 पुस्तकों को संग्रहित किया है, जिसे यदि आपने पढना प्रारम्भ कर दिया तो बिना समाप्त किए
नहीं रुकेंगे।
1.मधुशाला (Madhushala)
क्यों पढें ?
हरिवंशराय
'बच्चन' की अमर काव्य-रचना मधुशाला 1935 से लगातार प्रकाशित होती आ रही
है। सूफियाना रंगत की 135 रुबाइयों से गूँथी गई इस कविता क हर रुबाई का अंत 'मधुशाला' शब्द से होता है। पिछले आठ
दशकों से कई-कई पीढि़यों के लोग इस गाते-गुनगुनाते रहे हैं। यह एक ऐसी कविता है]
जिसमें हमारे आसपास का जीवन-संगीत भरपूर आध्यात्मिक ऊँचाइयों से गूँजता प्रतीत
होता है।
मधुशाला
का रसपान लाखों लोग अब तक कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे] लेकिन यह 'कविता का प्याला' कभी खाली होने वाला नहीं है, जैसा बच्चन जी ने स्वयं लिखा
है-भावुकता
अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का
प्याला; कभी न कण
भर खाली होगा, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठक गण हैं
पीनेवाले, पुस्तक
मेरी मधुशाला।
2.गीतांजलि (Gitanjali)
क्यों पढें ?
गीतांजलि
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के द्वारा मानव जाति को दिया गया एक अच्छा उपहार है ।
गीतांजलि उन सवालों का जवाब है जो हर मन के अंदर संदेह के रुप में दबे रहते हैं।
गुरुदेव प्रकृति में सत्य की खोज करते हैं और उसे एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत
करते हैं। गीतांजलि एक गैर-आस्तिक को आस्तिक भक्त में बदलने की शक्ति है। यह हम
सभी के लिए पढना आवश्यक है ।
गीतांजलि
बंगला में लिखी गई थी और फिर गुरुदेव ने स्वंय इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया था ।
सन 1913 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया । तब से दुनिया की सभी प्रमुख
भाषाओं में गीतांजलि का अनुवाद किया गया है। गीतांजलि के इस अनुवाद में अर्थ की व्याख्या करने का को प्रयास
नहीं किया गया है, हालांकि प्रत्येक गीत को सरल हिंदी
में अनुवादित किया गया है ताकि पाठक गीतांजलि पढ़ने का आनंद ले सकें।
3.रश्मिरथी (Rashmirathi)
क्यों पढें ?
रश्मि: लाइट (
सूर्य किरण), रथी: रथ पर
सवार होकर ( जो सारथी नहीं है), एक हिंदी महाकाव्य है, वह 1952 में हिंदी
कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा लिखी गई थी। यह कर्ण के जीवन के आसपास केंद्रित है, जो महाकाव्य महाभारत में अविवाहित कुंती (पांडु की पत्नी) का
पुत्र था। यह "कुरुक्षेत्र" और आधुनिक हिंदी साहित्य की क्लासिक्स के
अलावा दिनकर की सबसे प्रशंसित कार्यों में से एक है।
4.कामायनी (Kamayani)
क्यों पढें ?
जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890 - 15 नवम्बर 1937) हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार
तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं।
उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली
के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी
संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी
प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के प्रमुख
आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ
कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी।
5. भारत-भारती (Bharat Bharati)
क्यों पढें ?
`भारत-भारती’
मैथिलीशरण गुप्त की सर्वाधिक प्रचलित कृति है। यह सर्वप्रथम संवत् १९६९ में
प्रकाशित हुई थी और अब तक इसके पचासों संस्करण निकल चुके हैं। एक समय था जब
‘भारत-भारती’ के पद्य प्रत्येक हिन्दी-भाषी के कण्ठ पर थे। गुप्त जी का प्रिय
हरिगीतिका छन्द इस कृति में प्रयुक्त हुआ है। भारतीय राष्ट्रीय चेतना की जागृति
में इस पुस्तक का हाथ रहा है। यह काव्य तीन खण्डों में विभक्त है : (१) ‘अतीत’
खण्ड, (२) ‘वर्तमान’
खण्ड, (३) ‘भविष्यत्’
खण्ड। ‘अतीत’ खण्ड में भारतवर्ष के प्राचीन गौरव का बड़े मनोयोग से बखान किया गया
है। भारतीयों की वीरता, आदर्श, विद्या-बुद्धि, कला-कौशल, सभ्यता-संस्कृति, साहित्य-दर्शन, स्त्री-पुरुषों
आदि का गुणगान किया गया है। ‘वर्तमान’ खण्ड में भारत की वर्तमान अधोगति का चित्रण
है। इस खण्ड में कवि ने साहित्य, संगीत, धर्म, दर्शन आदि के
क्षेत्र में होनेवाली अवनति, रईसों और
उनके सपूतों के कारनामें, तीर्थ और
मन्दिरों की दुर्गति तथा स्त्रियों की दुर्दशा आदि का अंकन किया है। ‘भविष्यत्’
खण्ड में भारतीयों को उद्बोधित किया गया है तथा देश के मंगल की कामना की गयी है।
कवि : गुलजार
6. कविताऐं (Selected Poems)
कवि : गुलजार
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क्यों पढें ?
गुलज़ार, भारत
के बेहतरीन फ़िल्म निर्माताओं और गीतकारों में से एक हैं । वे हृदय से एक कवि हैं। उनके द्वारा लिखे गीत एक काव्य है जिस
वजह से वे हिंदी सिनेमा के एक दुर्लभ गीतकार के रूप में जाने जाते हैं । आज, गुलज़ार
को भारत के अग्रणी कवियों की श्रेणी में रखी जाती है जिसकी कविता मे मानवीय
रिश्तों की खोज और संवेदनशीलता का वर्णन है ।
7. नीलाम्बरा (Nilambara)
क्यों पढें ?
नीलाम्बरा’ में संग्रहीत कविताओं के बारे में महादेवीजी ने यह
कहा है, ‘‘काव्य में प्रकृति के सहयोग की कथा
कालजयी कथा है, जिसे आज का निर्मम बुद्धिवाद अब तक
भुला नहीं पाया। कदाचित् भुलाने का प्रयास मनुष्य को एकांगी बनाकर उससे
आनन्द-उल्लास के मूल्यवान क्षण छीन लेगा।’’
महादेवी वर्मा का
जन्म 26 मार्च, 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में
हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल इंदौर में हुई। 22 वर्ष की उम्र में महादेवी जी बौद्ध-दीक्षा लेकर भिक्षुणी बनना
चाहती थीं लेकिन महात्मा गांधी से संपर्क होने के बाद अपना निर्णय बदलकर वह समाज
सेवा में लग गईं। नारी-शिक्षा प्रसार के उद्देश्य से उन्होंने प्रयाग महिला
विद्यापीठ की स्थापना की और प्रधानाचार्य के पद की बागडोर संभाली। महादेवी जी की
पहचान एक उच्च कोटि की हिन्दी कवयित्री, स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षा-शास्त्री और महिला ‘एक्टिविस्ट’ की थी। उन्हें 1969 में साहित्य अकादमी फ़ैलोशिप, 1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1988 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया।
कवि : सुमित्रानंदन
पंत
क्यों पढें ?
ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त 1968
छायावाद के प्रमुख स्तम्भ सुमित्रानंदन पंत की काव्यचेतना का प्रतिबिम्बन
है ‘चिदंबरा’। इसमें कवि के 1937 से 1957 तक की बीस वर्षों की विकास-यात्रा की झलक मिलती है। स्वयं पंत ने स्वीकार
किया है कि ‘चिदंबरा’ में उनकी भौतिक, मानसिक, आध्यात्मिक संचरणों से प्रेरित आन्तरिक लयबद्धता व्याप्त है। ‘युगवाणी’ से
लेकर ‘अतिमा’ तक की रचनाओं के इस संचयन में पंत की काव्य-चेतना का संचरण ‘चिंदबरा’
में परिलक्षित होता है। पंत ने भौतिक और आध्यात्मिक दोनों दर्शनों से जीवनोपयोगी
तत्त्वों को लेकर अपनी रचनाओं में भरे-पूरे मनुष्यत्व का निर्माण करने का प्रयास
किया है जिसकी आवश्यकता आज भी बनी हुई है।
9. मतदान केंद्र पर झपकी (Matadan kendra par jhapaki)
9. मतदान केंद्र पर झपकी (Matadan kendra par jhapaki)
क्यों पढें ?
मतदान केन्द्र पर झपकी । ये कविताएँ एक कवि का पक्ष रखती
हैं जिसे केदार जी इक्कीसवीं सदी की दूसरी दहाई में आकर पक्षहीन हो चुके हम लोगों
को सौंप रहे हैं। ये कविताएँ हिंसा के विशाल परदे के आगे एक मनुष्य का हिंसक होने
से इनकार हैं—देखने में बहुत विनम्र, विनीत, लेकिन चट्टान-सा सख्त, दृढ़ और निर्णायक। ज़रूरी नहीं कि उनकी सूची में हमारा
नाम हो ही, जिनका नाम किसी सूची में नहीं, उनकी भी एक दुनिया है, जिसका नेतृत्व पेड़ करते हैं, और आपस में टकराते सत्ता के काले-पीले-सफेद नारों के बरक्स
जिसके पास पृथ्वी के सबसे सटीक और सबसे सुन्दर नारे हैं। वे नारे जो नदियों को
उनका पानी, चींटियों को उनके बिल और आँखों को
उनकी झपकी लौटा देने की पैरवी कर रहे हैं। इस संग्रह को पढ़ते हुए हमें इन रवहीन
नारों की ताकत का अहसास होता है।
10.सुभद्राकुमारी चौहान की 51 श्रेष्ठ रचनाऐं
क्यों पढें ?
1. अनोखा दान, 2.आराधना, 3. इसका रोना, 4. उपेक्षा, 5. उल्लास, 6. कलह-कारण, 7. कोयल, 9. खिलौनेवाला, 10. चलते समय, 11. चिंता., 12. जलियाँवाला बाग में बसंत, 13. जीवन-फूल, 14. झांसी की रानी, 15.झाँसी की रानी की समाधि पर, 16. झिलमिल तारे, 17. ठुकरा दो या प्यार करो, 18. तुम, 19. नीम, 20. परिचय, 21. पानी और धूप, 22. पूछो, 23. प्रथम दर्शन, 24. प्रतीक्षा, 25. प्रभु तुम मेरे मन की जानो, 26. प्रियतम से, 27. फूल के प्रति, 28. बालिका का परिचय, 29. बिदाई, 30. भ्रम, 31. मधुमय प्याली, 32. मुरझाया फूल, 33. मातृ-मन्दिर में, 34. मेरा गीत, 35. मेरा जीवन, 36. मेरा नया बचपन, 37. मेरी टेक, 38. मेरे पथिक, 39. यह कदम्ब का पेड़, 40. राखी, 41. राखी की चुनौती, 42. विजयी मयूर, 43. विदा, 44. वीरों का कैसा हो वसंत, 45. वेदना, 46. व्याकुल चाह, 47. सभा का खेल, 48. समर्पण, 49. साध, 50. स्मृतियाँ, 51. स्वदेश के प्रति