श्रीमदभागवत भारतीय वाङ्मयका मुकुटमणि है। भगवान शुकदेवद्वारा महाराज परीक्षितको सुनाया गया भक्तिमार्गका तो मानो सोपानही है। इसके प्रत्येक श्लोकमें श्रीकृष्ण-प्रेमकी सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वयके साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है। कलि सन्तरणका साधन-रूप यह सम्पूर्ण ग्रन्थ-रत्न मूलके साथ हिन्दी-अनुवाद, पूजन-विधि भागवत-महात्म्य, आरती, पाठके विभिन्न प्रयोगोंके साथ दो खण्डोंमें उपलब्ध है।
Narad
Puran
नारदपुराण में सदाचार-महिमा, वर्णाश्रम धर्म, भक्ति तथा भक्तके लक्षण, विविध प्रकारके मंत्र, देवपूजन, तीर्थ-माहात्म्य, दान-धर्मके माहात्म्य और भगवान
विष्णुकी महिमाके साथ अनेक भक्तिपरक उपाख्यानोंका विस्तृत वर्णन किया गया है। 768 पेज में प्रस्तुत है।
Markandey Puran
The birds said- 'O Jaimini! This was the way, sage Markandeya
had narrated the divine tales to Kraustuki. A person who either studies this
Purana or listens to it achieves great accomplishment. All his desires are
fulfilled and he enjoys a long life. He becomes free from all his sins.
Markandeya Purana is the seventh among all the eighteen Puranas. Listening to
it helps a man to atone for all the sins committed during the period of one
hundred crore Kalpas. The virtues attained by listening to Markandeya Purana
are equivalent to the virtues attained by making donations at Pushkar or by
studying all the Vedas.
विषय की विविधता एवं लोकोपयोगिता की दृष्टि
से इस अग्निपुराण का विशेष महत्त्व है। इस में परा-अपरा विद्याओं का वर्णन, महाभारत
के सभी पर्वों की संक्षिप्त कथा, रामायण की संक्षिप्त कथा, मत्स्य, कूर्म
आदि अवतारों की कथाएँ, सृष्टि-वर्णन, दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, विभिन्न देवताओं के मन्त्र आदि अनेक उपयोगी विषयों का अत्यन्त सुन्दर
प्रतिपादन किया गया है। यह श्रीमद द्वैपायन मुनि प्रणीत अग्निपुराण (मूल संस्कृत
का हिंदी-अनुवाद) 848 पेज में प्रस्तुत है |
Brahmavaivartapurana figures as the tenth in the traditional
list of the Puranas. It is divided into four parts called khandas, comprising
267 chapters. The khandas are: Brahmakhanda: 30 chapters, Prakrti-Khanda: 67
chapters, Ganapatikhanda: 46 chapters and Srikrsnajanmakhanda: 133 chapters. It
is well known that the Brahmavaivarta is a Vaisnavite Purana and the sole
objective of the work is to glorify the life and achievements of Sri Krsna, an
incarnation of Visnu and his Sakti Radha. Many episodes and topics have been
interwoven to embellish the main theme of the work. In this Purana, Krsna is
not simply an incarnation, he is far superior to and even creator of Prakrti.
He is God above all gods.
***********