Monday 20 July 2020

महापुराण की महिमा

 
            गतांक 'महापुराण की महिमा'  में हमनें ब्रह्म पुराण,  पद्म पुराण एवं विष्णु पुराण के बारे मेंं एवं वायु पुराण, भागवत  पुराण, नारद पुराण, मारकण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण एवं ब्रह्मवैवर्त पुराण की पुस्तक चर्चा  की है। इस अक मे हम इसके बाद के अन्य पुराणों के बारे में चर्चा करेंगे । 

          भारतीय संस्कृति के मूल धारा के रूप में वेदों के बाद पुराणों का ही स्थान है । वेदों में वर्णित अगम रहस्यों तक जन समान्य की पहुँच नहीं हो पातीपरंतु पुराणों की मंगल मयीज्ञान प्रदायनी दिव्य कथाओं का श्रवण-मनन और पठन-पाठन कर जन साधारण भी भक्ति तत्व के अनुपम रहस्य से सहज ही परिचित हो सकते हैं ।
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Sri Ling Mahapuran

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यह श्रीलिङ्गमहापुराण भगवान शिवकी उपासना एवं महिमाका विस्तृत परिचायक है इसमें शैवदर्शन, पाशुपतयोग, लिङ्ग-स्वरुप, लिङ्ग-माहात्म्य, लिंगार्चन एवं योगाचार्यों तथा शिव भक्तोंकी कथाओं का सरस वर्णन है। अनुवाद सहित 832 पेज में प्रस्तुत है।







Varah Puran

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इस पुराण में भगवान् श्रीहरि के वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस में भगवान् नारायण का पूजन-विधान, शिव-पार्वती की कथाएँ, वराहक्षेत्रवर्ती आदित्यतीर्थों की महिमा, मोक्षदायिनी नदियों की उत्पत्ति और माहात्म्य एवं त्रिदेवों की महिमा आदिपर भी विशेष प्रकाश डाला गया है। कल्याण में प्रकाशित इस पुराण को बड़े टाइप में विभिन्न चित्रों और आकर्षक लेमिनेटेड आवरण-पृष्ठ के साथ प्रकाशित किया गया है।



Skanda Purana

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King Pariksit belonged to the twilight period between the end by Dvapara and beginning of Kaliyuga and had, under the influence of the latter, insulted a meditating sage named Samika by throwing a dead serpent over his shoulders, thus earning the wrath of the sage’s son Srngin. Pariksit under Srngin’s curse had to die of Taksaka’s, the king of serpents, bite on the seventh day.






Vaman Puran

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यह पुराण मुख्यरूप से त्रिविक्रम भगवान् विष्णु के दिव्य माहात्म्य का व्याख्याता है। इसमें भगवान् वामन, नर-नारायण, भगवती दुर्गा के उत्तम चरित्र के साथ भक्त प्रह्लाद तथा श्रीदामा आदि भक्तों के बड़े रम्य आख्यान हैं। इसके अतिरिक्त, शिवजी का लीला-चरित्र, जीवमूत वाहन-आख्यान, दक्ष-यज्ञ-विध्वंस, हरि का कालरूप, कामदेव-दहन, अंधक-वध, लक्ष्मी-चरित्र, प्रेतोपाख्यान, विभिन्न व्रत, स्तोत्र और अन्त में विष्णुभक्ति के उपदेशों के साथ इस पुराण का उपसंहार हुआ है।


Koorm Puram

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महापुराणों की सूची में पंद्रहवें पुराण के रूप में परिगणित कूर्म पुराण का विशेष महत्व है । सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने कूर्म आवतार धारण करके इस पुराण को राजा इंद्र धुम्न को सुनाया था । पुन: भगवान कूर्म ने उसी कथानक को समुद्र मंथन के समय इंद्रादि देवताओं तथा नारदादि ऋषिगणों से कहा । तीसरी बार नैमिशारण्य के द्वादश वर्षीय महासत्र के अवसर पर रोमहर्षण सूत के द्वारा इस पवित्र पुराण को सुनने का सौभाग्य अट्ठासी हजार ऋषियों को प्राप्त हुआ । भगवान कूर्म के द्वारा कथित होने के कारण इस पुराण का नाम कूर्मपुराण के नाम से विख्यात हुआ । 




Matsya-Maha-Puran


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अट्ठारह पुराणों  में मत्स्य पुराण अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है । भगवान विष्णु के मत्सय अवतार से संबंध्द होने के कारण यह मत्स्य पुराण कहलाता है । भगवान मत्स्य के द्वारा वैवस्वत मनु तथा सप्तर्षियों को जो अत्यंत दिव्य एवं कल्याणकारी उपदेश दिया गया था, वे ही मत्स्य पुराण में संगृहित हैं । सृष्टि के प्रारंभ में जब हय ग्रीव नामका राक्षस वेदादि शास्त्रों को चुराकर पाताल में चला गया, तब भगवान ने मत्स्यावतार धारण कर वेदों को उध्दार किया । भगवान के दस अवतारों मत्स्यावतार सर्वप्रथम है ।  


 
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