Sunday, 17 January 2021

 संविधान निर्माता बाबा साहब भीम राव अम्बेदकर (Dr. B R Ambedkar Books) का व्यक्तित्व महान था । उनसे संम्बधित कुछ ई-बुक्स मुफ्त या अत्यंत कम मूल्य पर उपलब्ध है जिसके बारे में यहाँ चर्चा की गयी है ।

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जो कुछ मैं कर सका, वह जीवन भर मुसीबतें सहन करके विरोधियों से टक्कर लेने के बाद कर पाया हूँ। जिस कारवाँ को आप यहाँ देख रहे हैं, उसे मैं अनेक कठिनाइयों से यहाँ ला पाया हूँ। अनेक अवरोधों, जो इसके मार्ग में आ सकते हैं, के बावजूद इस कारवाँ को बढ़ते रहना है। अगर मेरे अनुयायी इसे आगे ले जाने में असमर्थ रहे तो उन्हें इसे यहीं पर छोड़ देना चाहिए, जहाँ पर यह अब है; पर किन्हीं भी परिस्थितियों में इसे पीछे नहीं हटने देना है। मेरी जनता के लिए मेरा यही संदेश है।”


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भीमराव रामजी आंबेडकर केवल भारतीय संविधान के निर्माता एवं करोड़ों शोषित-पीडि़त भारतीयों के मसीहा ही नहीं थे; वे अग्रणी समाज-सुधारक; श्रेष्ठ विचारक; तत्त्वचिंतक; अर्थशास्त्री; शिक्षाशास्त्री; पत्रकार; धर्म के ज्ञाता; कानून एवं नीति निर्माता और महान् राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने समाज और राष्ट्रजीवन के हर पहलू पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। सामाजिक समता और बंधुता के आधार पर एक नूतन भारत के निर्माण की नींव रखी। उनका व्यक्तित्व एक विराट् सागर और कृतित्व उत्तुंग हिमालय जैसा था।विगत अनेक वर्षों से वैचारिक अस्पृश्यता और राजनीतिक स्वार्थ के लगातार बढ़ते जा रहे विस्तार ने हमारे जिन राष्ट्रनायकों के बारे में अनेक भ्रांतियुक्त धारणाओं को जनमानस में मजबूत करने का दूषित प्रयत्न किया है; उनमें डॉ. बाबासाहब आंबेडकर प्रमुख हैं। उन्हें किसी जाति या वर्ग विशेष अथवा दल विशेष तक सीमित कर दिए जाने के कारण सामाजिक समता-समरसता ही नहीं. 

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राष्ट्रीय एकता की भी अपूरणीय क्षति हो रही है। इस दृष्टि से चार
खंडों में उनका व्यक्तित्व-कृतित्व वर्णित है : खंड एक—‘जीवन दर्शन’; खंड दो—‘व्यक्ति दर्शन’; खंड तीन— ‘आयाम दर्शन’ और खंड चार ‘राष्ट्र दर्शन’। डॉ. बाबासाहब भीमराव आंबेडकर को समग्रता में प्रस्तुत करने वाला एक ऐसा अनन्य दस्तावेज है; जो उनके बारे में फैले या फैलाए गए सारे भ्रमों का निवारण करने में तो समर्थ है ही; साथ ही उन्हें एक चरम कोटि के दृष्टापुरुष तथा राष्ट्रनायक के रूप में प्रस्थापित करने में भी पूर्णतः सक्षम है।


"हर व्यक्ति का अपना जीवनदर्शन होना चाहिए; क्योंकि हर व्यक्ति के पास ऐसा मानक होना चाहिए; जिससे वह अपने चरित्र को माप सके। यह दर्शन कुछ और नहीं; चरित्र मापने का एक मानक है। सकारात्मक रूप से मेरे सामाजिक दर्शन को मात्र तीन शब्दों में बतलाया जा सकता है :स्वतंत्रता; समानता एवं बंधुत्व। मेरे दर्शन का आधार धर्म में है; राजनीति विज्ञान में नहीं। मैंने इसे महात्मा बुद्ध के उपदेशों से लिया है। उन्हें मैं अपना गुरु मानता हूँ। उनके दर्शन में स्वतंत्रता तथा समानता का अपना एक स्थान है; लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि असीमित स्वतंत्रता समानता को नष्ट कर देती है तथा पूर्ण समानता से स्वतंत्रता का हनन होता है।"

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इसी पुस्तक से डॉ. बाबासाहब आंबेडकर एक राष्ट्रीय नेता थे। उन्हें मात्र दलित नेता कहना; उनकी विद्वत्ता; जनआंदोलनों; सरकार में उनकी भूमिका के साथ न्याय नहीं होगा। युगों पुरानी जाति आधारित अन्यायपूर्ण और भेदभावकारी समाज में सामाजिक समानता और सांस्कृतिक एकता के जरिए लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का उनका व्यापक दृष्टिकोण जगजाहिर है। मानवाधिकारों के राष्ट्रवादी और साहसी नेता के रूप में उनके भाषणों में आधुनिक भारत की सामाजिक चेतना को जगाने के लिए उनके जीवनपर्यंत समर्पण की झलक मिलती है।

प्रखर मानववादी डॉ. आंबेडकर के संपूर्ण जीवनदर्शन और प्रेरणाप्रद व्यक्तित्व का दिग्दर्शन कराते उनके भाषणों का पठनीय संकलन।

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जिस स्थान पर और जिन परिस्थितियों में जन्म मिला; उसके अनुकूल आचरण को ही भाग्यलेख मान लेना तो अत्यंत सहज है। ऐसा तो पशु भी करते ही हैं; परंतु मानव को यदि सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है; तो इसके पीछे कारण केवल इतना ही है कि वह इस भाग्यलेख को मिटाकर अपनी इच्छाशक्ति के बूते पर अपना भाग्य स्वयं लिख सकता है; और वैसा लिख सकता है; जैसा वह चाहता है। इच्छाशक्ति की यही अदम्य दृढ़ता मिलती है; डॉ. भीम राव आंबेडकर के जीवनचरित में। अछूत-संतान से लेकर ‘भारत-रत्न’ की उपाधि तक पहुँचने तक का उनका सारा इतिहास ही कड़े संघर्ष की गाथा है।


बाबासाहेब डा. आंबेडकर की कालजयी कृति ‘एनिहिलेशन ऑफ़ कास्ट’ का भारत की लगभग

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सभी भाषाओं में अनुवाद हुआ है. हिंदी में ही इसके अनेक अनुवाद हुए हैं. पर वे काफी हद तक संक्षिप्त हैं. किन्तु, प्रस्तुत अनुवाद, ‘जाति का विनाश’, जिसे यशस्वी पत्रकार राजकिशोर जी ने किया है, इस दोष से मुक्त है. इसमें मूल कृति के एक भी पैराग्राफ को न तो कम किया गया है, और न संक्षिप्त. इस अनुवाद की मुख्य विशेषता यह है, जो अन्य अनुवादों में लगभग नहीं है, कि इसमें उन स्थलों, विद्वानों, ऐतिहासिक घटनाओं, उद्धरणों और धर्मग्रंथों के बारे में, जिनका सन्दर्भ डा. आंबेडकर ने अपने व्याख्यान में दिया है, फुटनोट में उनका विवरण भी स्पष्ट कर दिया गया है. इस अनुवाद में उस पत्राचार और विवाद को भी पूर्णरूप में शामिल किया गया है, जो व्याख्यान को लेकर डॉ. आंबेडकर का संतराम बीए और महात्मा गांधी से हुआ था. एक और विशेषता इस पुस्तक की यह है कि डा. आंबेडकर ‘एनिहिलेशन ऑफ़ कास्ट’ के साथ अपने जिस प्रथम शोधपत्र ‘भारत में जातियां : उनका तंत्र, उत्पत्ति और विकास’ को शामिल करना चाहते थे, राजकिशोर जी ने उसे भी अनुवाद करके इसमें शामिल कर दिया है, जिससे इसका पाठकीय महत्व और भी बढ़ गया है. - कंवल भारती


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भीमराव आंबेडकर हिन्दुओँ में पहले दलित या निम्न जाति नेता थे जिन्होंने पश्चिम जाकर पीएच-डी. जैसे सर्वोच्च स्तर तक की औपचारिक शिक्षा हासिल की थी । अपनी इस अभूतपूर्व उपलब्धि के बाबजूद वह अपनी जड़ो से जुड़े रहे और तमाम उम्र दलित अधिकारों के लिए लड़ते रहे । भारत के सबसे प्रखर और अग्रणी दलित नेता के रूप में आंबेडकर का स्थान निर्विवाद है । निम्न जातियों को एक अलग औपचारिक और कानूनी पहचान दिलाने के लिए आंबेडकर सालों तक भारत के स्वर्ण हिन्दू वर्चस्त्र वाले समूचे राजनीति प्रतिष्ठान से अकेल लोहा लेते रहे । स्वतंत्र भारत की पहली केन्द्र सरकार में आंबेडकर को कानून मंत्री और संविधान का प्रारूप तैयार करनेवाली समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया । इन पदों पर रहते हुए उन्हें भारतीय राजनय पर गांधीवादी प्रभावों पर अंकुश लगाने में उल्लेखनीय सफलता मिली । क्रिस्तोफ़ जाफ़लो ने उनके जीवन को समझने के लिए तीन सबसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला है : एक समाज वैज्ञानिक के रूप में आंबेडकर; एक राजनेता और राजनीतिज्ञ के रूप में आंबेडकर; तथा स्वर्ण हिन्दुत्व के विरोधी एवं बौद्धधर्म के एक अनुयायी व प्रचारक के रूप मे आंबेडकर |

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