ई-पुस्तक
आप सभी पाठकों का स्वागत है । यहाँ हम आपको उन कृतियाँ से अवगत कराना चाहते हैं, जिसे पढकर आनंद महसूस करेंगे। हिंदी साहित्य में शुरुआत से लेकर वर्तमान समय तक बहुत सारी ऐसी पुस्तकें लिखी गयी जो अत्यंत ही पठनीय एवं रोचक है। यहाँ पर कुछ पुस्तकों को उसके परिचय के साथ प्रस्तुत किया गया है, जिससे आप सभी को अपने रुचि अनुसार पुस्तक चयन में आशानी होगी ।
इस भाग में हमने अतयंत पठनीय, मजेदार 10 पुस्तकों को संग्रहित किया है, जिसे यदि आपने पढना प्रारम्भ कर दिया तो बिना समाप्त किए नहीं रुकेंगे।
1.नमक का दारोगा (Namak Ka Daroga)
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लेखक : प्रेमचंद
क्यों पढें ?
जब नमक का नया विभाग बना और इश्वरप्रदत्त वस्तु के व्यवहार करने
का निषेध हो गया तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे। अनेक प्रकार के
छल-प्रपंचों का सूत्रपात हुआ। कोई घूस से काम निकालता था, तो कोई चालाकी से। अधिकारियों के पौ-बारह
थे। पटवारीगिरी का सर्वसम्मानित पद छोड़-छोड़कर लोग इस विभाग की बरकंदाज़ी करते
थे। इसके दारोगा पद के लिए तो वकीलों का भी जी ललचाता था। यह वह समय था, जब अँग्रेज़ी शिक्षा और ईसाई मत को लोग एक
ही वस्तु समझते थे। फ़ारसी का प्राबल्य था। प्रेम की कथाएँ और श्रृंगार रस के
काव्य पढ़कर फ़ारसीदाँ लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे। मुंशी
वंशीधर भी ‘ज़ुलेख़ा’ की विरहकथा समाप्त करके ‘शीरी’ और ‘फ़रहाद’ के
प्रेम-वृत्तान्त को ‘नल’ और ‘नील’ की लड़ाई और अमेरिका के आविष्कार से अधिक
महत्त्व की बातें समझते हुए रोज़गार की खोज में निकले।
2. बड़े घर की बेटी (Bade Ghar Ki Beti)
लेखक : प्रेमचंद
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क्यों पढें ?
बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के ज़मींदार
और नम्बरदार थे। उनके पितामह किसी समय बड़े धन-धान्य सम्पन्न थे। गाँव का पक्का
तालाब और मंदिर, जिनकी अब मरम्मत
भी मुश्किल थी, उन्हीं के
कीर्ति-स्तम्भ थे। कहते हैं, इस दरवाज़े पर हाथी झूमता था, अब उसकी जगह एक बूढ़ी भैंस थी, जिसके शरीर में अस्थि-पंजर के सिवा और कुछ
न रहा था, पर दूध शायद बहुत
देती थी, क्योंकि एक न एक
आदमी हाँड़ी लिये उसके सिर पर सवार ही रहता था। बेनीमाधव सिंह अपनी आधी से अधिक
सम्पत्ति वकीलों को भेंट कर चुके थे। उनकी वर्तमान आय एक हज़ार रुपये वार्षिक से
अधिक न थी। ठाकुर साहब के दो बेटे थे। बड़े का नाम श्रीकण्ठ सिंह था। उसने बहुत
दिनों के परिश्रम और उद्योग के बाद बी.ए. की डिग्री प्राप्त की थी। अब एक दफ़्तर
में नौकर था। छोटा लड़का लालबिहारी सिंह दोहरे बदन का, सजीला जवान था। भरा हुआ मुखड़ा, चौड़ी छाती। भैंस का दो सेर ताज़ा दूध वह
उठ कर सवेरे पी जाता था। श्रीकण्ठ सिंह की दशा बिल्कुल विपरीत थी। इन नेत्रप्रिय
गुणों को उन्होंने ‘बी.ए.’इन्हीं दो अक्षरों पर न्योछावर कर दिया था। इन दो
अक्षरों ने उनके शरीर को निर्बल और चेहरे को कान्तिहीन बना दिया था। इसी से वैद्यक
ग्रंथों पर उनका विशेष प्रेम था। आयुर्वेदिक औषधियों पर उनका अधिक विश्वास था!
शाम-सवेरे उनके कमरे से प्राय: खरल की सुरीली कर्णमधुर ध्वनि सुनाई दिया करती थी।
लाहौर और कलकत्ते के वैद्यों से बड़ी लिखा-पढ़ी रहती थी।
3.प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ
लेखक : प्रेमचंद
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क्यों पढें ?
इस संग्रह में भारतीय लेखक मुंशी प्रेमचंद की कई कहानियों को
शामिल किया गया है। प्रेमचंद असाधारण प्रतिभा के धनी थे । वह जो देखते थे कोई और
नहीं देख पाता था । उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों और जीवन की घटनाओं को दिलचस्प
कहानियों के रूप में खूबसूरती से प्रस्तुत किया है। साधारण चीजें जो लोग आमतौर पर
अपने नियमित जीवन में उपेक्षा करते हैं, उन्हें लेखक द्वारा लघु कथाओं में शानदार ढंग से बुना गया है। जीवन और उनके आसपास के लोगों
के बारे में ईमानदारी पूर्वक चित्रण 70-80 साल से अधिक समय बाद भी उनकी
कहानियों को आकर्षक और पढ़ने योग्य बनाता है। उन्होंने अपने जीवन में निराश्रितता
और दरिद्रता का अनुभव किया, जो उनके कथनों को वास्तविकता के करीब लाता है। पाठक पुस्तक में दी गई छोटी कहानियों
के संग्रह के साथ स्वंय को जोड़ सकते हैं । हर कहानी में पाठकों और पूरी मानव जाति
के लिए एक संदेश है, इसलिए
यह
पुस्तक आज की तकनीकी-प्रेमी पीढ़ी के लिए रीढ की हड्डी है। साहित्य प्रेमियों के लिए
इस पुस्तक को पढना आनंददायक है ।
4.प्रेमचंद
की लोकप्रिय कहानियाँ
लेखक : प्रेमचंद
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क्यों पढें ?
दस-बारह
रोज और बीत गए। दोपहर का समय था। बाबूजी खाना खा रहे थे। मैं मुन्नू के पाँवों में
पीनस की पैजनियाँ बाँध रहा था। एक औरत घूँघट निकाले हुए आई और आँगन में खड़ी हो
गई। उसके वस्त्र फटे हुए और मैले थे, पर गोरी सुंदर औरत थी। उसने मुझसे पूछा,
‘‘भैया, बहूजी कहाँ हैं?’’ मैंने उसके निकट जाकर मुझेहाँह देखते हुए कहा,
‘‘तुम कौन हो, क्या बेचती हो?’’ औरत-‘‘कुछ बेचती नहीं हूँ, बस तुम्हारे लिए ये कमलगट्टे लाई हूँ। भैया, तुम्हें तो कमलगट्टे बड़े अच्छे लगते हैं न?’’
मैंने उसके हाथ में लटकती
हुई पोटली को उत्सुक आँखों से देखकर पूछा, ‘‘कहाँ से लाई हो? देखें।’’ स्त्री, ‘‘तुम्हारे हरकारे ने भेजा है, भैया.’’ मैंने उछलकर कहा,
‘‘कजाकी ने?’’
स्त्री ने सिर हिलाकर
‘हाँ’ कहा और पोटली खोलने लगी। इतने में अम्माजी भी चौके से निकलकर आइऔ। उसने
अम्मा के पैरों का स्पर्श किया। अम्मा ने पूछा, ‘‘तू कजाकी की पत्नी है?’’
औरत ने अपना सिर झुका
लिया। -इसी पुस्तक से उपन्यास सम्राट् मुंशी पेमचंद के कथा साहित्य से चुनी हुई
मार्मिक व हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह।
5.कफन
लेखक : प्रेमचंद
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क्यों पढें ?
प्रेमचंद
(1880-1936 ई.)
विश्वस्तर के महान् उपन्यासकार और कहानीकार हैं। उनके उपन्यासों तथा कहानियों में
हिन्दी के करोड़ों पाठकों को तो प्रभावित किया ही है, भारत की अन्य भाषाओं के पाठकों के ह्रदयों का स्पर्श
भी किया है। उन्होंने रूसी, फ्रेंच, अंग्रेजी, चीनी, जापानी इत्यादि भाषाओं में हुए अनुवादों के द्वारा
विश्व भर में हिंदी का गौरव बढ़ाया है। प्रेमचंद जनता के कलाकार थे। उनकी कृतियों
में प्रस्तुत जनता के सुख-दुःख, आशा-आकांक्षा, उत्थान-पतन इत्यादि के सजीव चित्र हमारे ह्रदयों को
हमेशा छूते रहेंगे। वे रवीन्द्र औऱ शरत् के साथ भारत के प्रमुख कथाकार हैं, जिनको पढ़े बिना भारत को समझना संभव नहीं है।
6. ईदगाह
लेखक : प्रेमचंद
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क्यों पढें ?
रमज़ान
के पूरे तीस रोज़ों के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब
हरियाली है, खेतों
में कुछ अजीब रौनक है, आसमान
पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी
हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं हैं, पड़ोस के घर से सुई-तागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी
के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें
तेल डालने के लिए तेली के घर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे
दें। ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना-भेंटना। दोपहर के पहले
लौटना असंभव है। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोज़ा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं; लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज है।
रोज़े बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज ईद का नाम रटते थे। आज वह
आ गई। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते। इन्हें गृहस्थी की चिंताओं
से क्या प्रयोजन! सेवैयों के लिए दूध और शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवैयाँ खाएँगे। वह क्या जानें कि अब्बाजान
क्यों बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं! उन्हें क्या खबर कि चौधरी आज
आँखें बदल लें, तो
यह सारी ईद मुहर्रम हो जाए। उनकी अपनी जेबों में तो कुबेर का धन भरा हुआ है।
बार-बार जेब से अपना खजाना निकालकर गिनते हैं और खुश होकर फिर रख लेते हैं।
7. बूढी काकी
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लेखक : प्रेमचंद
क्यों पढें ?
इस
कहानी में एक वृद्ध औरत तिरस्कार और अपमान का जीवन जीती है । भतीजे बुद्धिराम के
तिलक के समय सारा घर मिठाई, पूरी, कचौरी की सुगंध से भर जाता है। काकी भूखी प्यासी
उपेक्षित सी कोठरी में पड़ी रहती है, वह कुछ खा नहीं पाती है। बुजुर्ग को आदर देना चाहिए, यही इस कहानी की शिक्षा है|
8. दो बैलों की कथा
लेखक : प्रेमचंद
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क्यों पढें ?
इस संकलन में हमने बालमन को छूने वाली उन कहानियों
को चुना है, जो
प्रेमचंद को एक बाल साहित्यकार के रूप में परिचित कराती हैं। ये कहानियां बच्चों
के अलावा आम पाठकों के लिए भी रुचिकर होंगी क्योंकि इनमें शिक्षा के साथ मनोरंजन
भी है। प्रेमचंद
के साहित्य की सबसे बड़ी शक्ति है, जीवन के प्रति उनकी ईमानदारी। उनकी यह ईमानदारी
कहानियों में बखूबी दिखती है। उन्होंने बच्चों को ध्यान में रखते हुए अनेक
कहानियां लिखीं। ये कहानियां मनोरंजक होने के साथ ज्ञानवर्धक स्रोत भी हैं। उनके
साहित्य में भारतीय जीवन का सच्चा और यथार्थ चित्रण हुआ है। प्रसिद्ध साहित्यकार
प्रकाशचंद गुप्त ने लिखा है, ‘यह भारत नगरों और गाँवों में, खेतों और खलिहानों में, सँकरी गलियों और राजपथों पर सड़कों और गलियारों में, छोटे-छोटे खेतों और टूटी-फूटी झोपड़ियों में निवास
करता है। इस जीवन को प्रेमचंद अपनी लेखनी की शक्ति से बदलना चाहते थे और इसमें बड़ी
मात्रा में वे सफल भी हुए।
9. पंच परमेश्वर
लेखक : प्रेमचंद
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क्यों पढें ?
पंच परमेश्वर में प्रेमचंद ने दो अभिन्न मित्र अलगू
चैधरी और जुम्मन शेख के द्वारा पंच पद की गरिमा को समझाया है तथा न्याय की तराजू
को सर्वोपरि सिद्ध किया है। गांवों में व्याप्त गुटबंदी और संकीर्ण मनोवृत्ति पर
चोट करने के साथ ही यह कथा अन्याय और आपाधापी पर भी एक करारा व्यंग्य है। इसी के
साथ प्रेमचंद की अन्य श्रेष्ठ कहानियां भी दी गई हैं, जो प्रेरक भी हैं और बेहद रोचक भी। कथा - सम्राट के
गौरव से विभूषित संसार के अग्रणी कथाकारों में प्रतिष्ठित प्रेमचंद की कहानियों का
यह खण्ड सम्पूर्ण रूप से मूल पाठ है। इसे यशस्वी साहित्यकार अमृतराय के निर्देशन
में सम्पादित किया गया है। "मुंशी प्रेम चंद का जनम बनारस के निकट लमही गांव
में सन 31 जुलाई
1880 में
हुआ था ! उन्होंने बी.ए की पढ़ाई पूरी करने के अपरांत इक्कीस वर्ष की उम्र में
लिखना शुरू कर दिया था ! उन्होंने लिखने की शुरुआत उर्दू भाषा से की ! उनकी उर्दू
में लिखी कहानियों का प्रथम संकलन 'सोजे वतन' के नाम से प्रकाशित हुआ ! प्रेमचंद जी ने सन 1923
में सरस्वती प्रेस की
स्थापना की तथा सन 1930 से
'हंस' नामक एक ऎतिहासिक पत्रिका का सम्पादन भी किया !
उन्होंने अपने जीवनकाल में कई कहानियाँ उपन्यास और वैचारिक निबंध लिखे ! उनकी
रचनाओं में उनकी यही विशेषताये विध्समां हैं ! 8 अक्टूबर 1936 में मुंशीप्रेमचंद का बीमारी कारण निधन हो गया !
10. ठाकुर का कुआँ
लेखक : प्रेमचंद
क्यों पढें ?
10. ठाकुर का कुआँ
लेखक : प्रेमचंद
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क्यों पढें ?
जोखू ने लोटा मुँह से लगाया तो पानी में सख्त बदबू
आयी । गंगी से बोला- यह कैसा पानी है ? मारे बास के पिया नहीं जाता । गला सूखा जा रहा है और
तू सड़ा पानी पिलाये देती है ! गंगी प्रतिदिन शाम पानी भर लिया करती थी । कुआँ दूर
था, बार-बार
जाना मुश्किल था । कल वह पानी लायी, तो उसमें बू बिलकुल न थी, आज पानी में बदबू कैसी ! लोटा नाक से लगाया, तो सचमुच बदबू थी । जरुर कोई जानवर कुएँ में गिरकर
मर गया होगा, मगर
दूसरा पानी आवे कहाँ से ?
ठाकुर के कुएँ पर कौन
चढ़ने देगा ? दूर
से लोग डाँट बतायेंगे । साहू का कुआँ गाँव के उस सिरे पर है, परंतु वहाँ भी कौन पानी भरने देगा ? कोई तीसरा कुआँ गाँव में है नहीं । जोखू कई दिन से बीमार है। कुछ देर तक तो प्यास रोके
चुप पड़ा रहा, फिर
बोला- अब तो मारे प्यास के रहा नहीं जाता । ला, थोड़ा पानी नाक बंद करके पी लूँ ।गंगी ने पानी न दिया । खराब पानी से बीमारी बढ़ जायगी इतना
जानती थी, परंतु
यह न जानती थी कि पानी को उबाल देने से उसकी खराबी जाती रहती हैं । बोली- यह पानी
कैसे पियोगे ? न
जाने कौन जानवर मरा है। कुएँ से मैं दूसरा पानी लाये देती हूँ।जोखू ने
आश्चर्य से उसकी ओर देखा- पानी कहाँ से लायेगी ?