हिन्दी साहित्य में उपन्यास लिखने की परंपरा पुरानी हो चुकी है । उपन्यासकारों ने एक से एक बढकर रचनायें लिखी हैं, जिस वजह से हिंदी साहित्य समृद्ध हुआ है । वैसे तो बहुतेरे उपन्यास हैं, परंतु यहाँ Latest Hindi Novels 2020 पेज पर कुछ अत्याधुनिक उपन्यासों की चर्चा प्रस्तुत की जा रही है । आज के युवा पीढी को ध्यान में रखते हुए कुछ रचनायें लिखी गयी हैं । ये रचनायें उन्हीं के द्वारा लिखी भी गयी है, अत: उनकी भाषा बोलचाल की अंग्रेजी शब्दों को भी समाहित करती है । आप इन्हें पढते हुए जरा भी अटपटापन महसूस नहीं करेंगे । रोचकता के दृष्टिकोण से भी अतयंत पठनीय है ।
दो दोस्त की एक कहानी है । उनकी दोस्ती धीरेधीरे
परवान चढती है, इस दौरान उन्हें खट्टे-मिठे अनुभव भी होते हैं । कभी वे जुड़े रहते हैं तो कभी
वे अलग हो जाते हैं, फिर भी उनके बीच प्यार बना रहता है,
परंतु एक दिन सब बिखर जाता है । यह कहानी है ‘देख लेंगे यार’ की । एक युवा लेखक द्वारा लिखी गयी
है ।
‘मल्लिका’ के बारे मे यह उपन्यास लिखा गया है, जिसकी लेखिका हैं मनीषा कुलश्रेष्ठ । भारतेन्दु हरिश्चंद्र आधुनिक हिंदी के निर्माता माने जाते हैं । मल्लिका उनकी प्रेमिका थी, जिसने भारतेंदु से लिखना-पढना सीख कर रचनात्मक कार्य किया था । उन्होंने बंगला साहित्य के तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया था । उसने मौलिक उपन्यास भी लिखा था । मनीषा कुलश्रेष्ठ ने मल्लिका को केन्द्र बिंदु में रखकर यह उपन्या लिखा है, जिसका नाम है ‘मल्लिका’।
‘डार्क हॉर्स’ एक युवा लेखक निलोत्पल मृणाल के द्वारा लिखी गयी है । यह उपन्यास उन छात्रों
की कहानी है जो हिंदी माध्यम से सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी करने के लिए दिल्ली
की गलियों में रहते हैं । पैसे की कमी, उच्च आकांक्षा,
दिन रात का संघर्ष, यह कहानी उन संघर्षों की है
। इस उपन्यास को 2015 का ‘साहित्य एकडमी यूथ अवार्ड’ से सम्मानित किया गया है । इस उपन्यास में गाँवों /
कस्बों से बाहर निकलने और शहरी जीवन के साथ विशेष रूप से मुखर्जी नगर, दिल्ली की
पृष्ठभूमि में होने वाले असामान्य विचारों का चित्रण किया गया है।
‘विटामिन जिंदगी’
के लेखक ललित कुमार है । आप परेशान हैं?... एक के बाद एक समस्याएँ जीवन में आती ही रहती
हैं... तो क्या आपको लगता है कि जीवन की प्रॉबलम्स कभी खत्म नहीं होंगी? क्या
आप जीवन में हार मान रहे हैं?...
जिस तरह शरीर को अलग-अलग विटामिन चाहिए -- उसी
तरह हमारे मन को भी आशा, विश्वास, साहस और प्रेरणा जैसे विटामिनों की ज़रूरत होती
है। लेखक ललित कुमार इन सभी को मनविटामिन कहते हैं। "विटामिन ज़िन्दगी"
एक ऐसा कैप्स्यूल है जिसमें ये सभी विटामिन मिलते हैं।
‘जिन्हें
जुर्म ए इश्क पर नाज था’ एक उपन्यास
है जिसे चर्चित लेखक पंकज सुबीर ने लिखा है । इस उपन्यास को पढ कर देखिए, अनोखे
तरीके से लिखा गया यह उपन्यास समाज के उस बिंदु प्रकाश डालता है जिस पर आज तक नहीं
लिखा गया है । दंगों को केंद्र में रखकर कहानी बुनी गयी है । एक अलग
दृष्टि कोण से दंगे के कारणों पर विचार किया गया है । इस वजह से यह उपन्यास अन्य उपन्यासों
से अलग है ।
इनके आलावे कुछ अन्य उपन्यास भी हैं जिसे आप पढ सकते हैं।
‘जंजीरें
और दीवारें’ रामबृक्ष
बेनीपुरी के द्वारा लिखा गया उपन्यास है । जंजीरें
फौलाद की होती हैं, दीवारें प्तत्थर की । किंतु
पटना जेल में जो दीवारें देखी थीं, उनकी दीवारें भले ही पत्थर- सी
लगी हों, थीं ईंट की ही । पत्थर की दीवारें तो सामने हैं - चट्टानों के ढोंकों से बनी
ये दीवारें । ऊपर- नीचे, अगल-बगल, जहाँ देखिए पत्थर- ही-पत्थर । पत्थर-काले पत्थर, कठोर पत्थर, भयानक पत्थर, बदसूरत पत्थर । किंतु अच्छा हुआ कि भोर की सुनहली धूप में हजारीबाग सेंट्रल
जेल की इन दीवारों का दर्शन किया । इन काली, कठोर, अलंघ्य, गुमसुम दीवारों की विभीषिका को
सूर्य की रंगीन किरणों ने कुछ कम कर दिया था । संतरियों की किरचें भी सुनहली हो
रही थीं । हाँ अच्छा हुआ, क्योंकि बाद के पंद्रह वर्षों
में न जाने कितनी बार इन दीवारों के नीचे खड़ा होना पड़ेगा । किसीने कहा है, सब औरतें एक- सी । यह सच हो या झूठ, किंतु मैं कह चुका हूँ सब जेल
एक-से होते हैं । सबकी दीवारें एक-सी होती हैं, सबके फाटक एक-से दुहरे होते हैं, सबमें एक ही ढंग के बड़े-चौड़े
ताले लटकते होते हैं, सबको चाबियों के गुच्छे भी
एक-से झनझनाते हैं और सबके वार्डर, जमादार, जेलर, सुपरिंटेंडेंट जैसे एक ही साँचे
के ढले होते हैं-मनहूस, मुहर्रमी; जैसे सबने हँसने से कसम खा ली हो । किंतु हजारीबाग का जेल अपनी कुछ विशेषता
भी रखता है । सब जेल बनाए जाते हैं अपराधियों को ध्यान में रखकर, हजारीबाग सेंट्रल जेल की रचना ही हुई थी देशभक्तों पर नजर रखकर ।
‘दिल्ली
मेरा परदेस’ दिल्ली
मेरा परदेस’ रघुवीर सहाय की डायरी पुस्तक है जो ‘धर्मयुग’ में 1960 से 63 तक ‘दिल्ली की डायरी’ नामक स्तम्भ के रूप में प्रकाशित हुई थी। तब
रघुवीर सहाय ‘सुन्दरलाल’ के नाम से यह स्तम्भ लिखा करते थे जो काफी चर्चित रहा।
इसके जरिए रघुवीर सहाय की कोशिश यह थी कि इसमें दिल्ली के जीवन पर टिप्पणियाँ हों
और ऐसी हों कि उनका दिल्ली के बाहर भी कोई अर्थ हो सके। ये तीन वर्ष बहुत
महत्त्वपूर्ण थे, क्योंकि नेहरू के राजनीतिक जीवन के वे अन्तिम
वर्ष थे। 1964 में उनके देहान्त के पहले राष्ट्रीय जीवन का चरित्र एक संकट से गुजर
रहा था। जिन मान्यताओं के लिए नेहरू कहते और करते थे, वे
उनके बाद भी बची रहेंगी या नहीं, यह प्रश्न एक सांस्कृतिक प्रश्न बन गया था।
‘दिल्ली की डायरी’ में नेहरू के जीवन के अन्तिम चार वर्षों में से तीन की स्पष्ट
झलक मिलती है। इस पुस्तक का नाम ‘दिल्ली मेरा परदेस’ क्यों है, इसके
बारे में खुद रघुवीर सहाय लिखते हैं कि, ‘दिल्ली मेरा देस नहीं है और दिल्ली किसी का देस
नहीं हो सकती। उसकी अपनी संस्कृति नहीं है। यहाँ के निवासियों के सामाजिक आचरण को
कभी इतना स्थिर होने का अवसर मिल भी नहीं सकता कि वह एक संस्कृति का रूप ग्रहण
करे। अधिक से अधिक वह सभ्यता का, बल्कि उसके अनुकरणों का एक केन्द्र हो सकती है।
‘निठल्ले
की डायरी’ हरिशंकर
परसाई । निठल्ला भी कंही डायरी लिखने का काम करेगा! असम्भव । उसी तरह अविश्वनीय
जैसे यह कि तुलसीदास ‘रामचरित मानस’ की पांडुलिपि टाइप करते पाये गये । या यह कि
तुकाराम पियानो पर अभंग गाते थे । मगर निठल्ले –निठल्ले में फर्क होता है । जैसे
इनकमटैक्स-विभाग के ईमानदार और शिक्षा विभाग के ईमानदार में फर्क होता है ।
ईमानदार दोनों हैं ।
रागदरबारी
जैसे कालजयी उपन्यास के रचयिता श्रीलाल शुक्ल हिंदी के वरिष्ठ और विशिष्ट कथाकार
हैं। उनकी कलम जिस निस्संग व्यंग्यात्मकता से समकालीन सामाजिक यथार्थ को
परत-दर-परत उघाड़ती रही है, पहला
पड़ाव उसे और अधिक ऊँचाई सौंपता है। श्रीलाल शुक्ल ने अपने इस नए उपन्यास को
राज-मजदूरों, मिस्त्रियों, ठेकेदारों, इंजीनियरों
और शिक्षित बेरोजगारों के जीवन पर केद्रित किया है और उन्हें एक सूत्र में पिरोए
रखने के लिए एक दिलचस्प कथाफलक की रचना की है।
पोस्ट बॉक्स न. २०३ नाला सोपारा
'पोस्ट बॉक्स नं- 203 नाला सोपारा' चर्चित लेखिका चित्रा मुद्गल द्वारा लिखित उपन्यास है, जिसे साहित्य अकादमी पुरस्कार 2018 से सम्मानित किया गया है । यह एक विशिष्ट उपन्यास है जो समाज के खास वर्ग ‘ किन्नर’ पर लिखी गयी है । उनकी जीवन शैली भिन्न है तथा आम लोगों के लिए रहस्यमयी है । सामान्य लोगों के लिए उनकी ज्यादतियां और अजीबोगरीब हरकतें ही सबसे ज्यादा आकर्षण है, परन्तु वे भी एक मनुष्य हैं, उनके सीने भी दिल धड़कता है, उनकी भी माताऐं है, उनके भी बचपन की यादें हैं ।
वैसे भी किन्नरों पर बहुत कम लिखी गयी है । जब एक सिद्धहस्त लेखिका की लेखनी इस विषय पर चलती है तो एक विशिष्ट रचना जन्म लेती है । यह एक ऐसा उपन्यास है, जिसने साहित्य एकेडमी के निर्णायक मंडल के सदस्यों को प्रभावित किया, जिस कारण उन्हें इस पुरस्कार से नवाजा गया । चित्रा मुद्गल बहुआयामी प्रतिभा की धनी है । उनके द्वारा कई उपन्यास लिखी गयी है । कई वर्षों के लम्बे अनुभव के बाद उन्होंने यह उपन्यास लिखी है । यही कारण है कि वह जो लिखती है एक नजीर बन जाती है ।
नीला चाँद
नीला चाँद, नीला चाँद, नीला चाँद-ये ही हैं इधर बीच के सुप्रसिद्ध तीन उपन्यास। ऐसा ही कहा था उषा किरण खान ने। 'नीला चाँद' कालजयी कथाकार शिवप्रसाद सिंह का यशस्वी उपन्यास है-जिसे तीन प्रख्यात पुरस्कार-सम्मान मिले-1991 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार, 1992 में शारदा सम्मान और 1993 में व्यास सम्मान।
'नीला चाँद' के लिए 'व्यास सम्मान' की प्रशस्ति में ठीक ही कहा गया है कि शिवप्रसाद सिंह का अनुकरण नहीं किया जा सकता। वे एक साथ बेबाक ढंग से सुरूप और सौन्दर्य को, वीभत्स और विरूप को, भयानक और चमत्कारिक को साकार और जीवन्त करने की कला में दक्ष हैं। वे इतिहास के स्रोतों से लेकर पुरातात्विक उत्खनन से सीधा सम्पर्क रखते हैं। शिलालेखों को जाँच कर अपनी सामग्री ग्रहण करते हैं।
'नीला चाँद' मध्ययुगीन काशी का विस्तृत फलक है। पर क्या ‘नीला चाँद' की सम्यक समीक्षा हो गयी? साहित्य अकादेमी से ज़्यादा पहुँचे न्यायाधीशगण शारदा सम्मान में और उससे भी एक कदम आगे पहुँचे व्यास सम्मान को देते समय, किन्तु नयी सहस्राब्दी की दहलीज़ पर पाँव रखने वालों को क्या 'नीला चाँद' का अन्तिम सन्देश पहुँचा दिया गया?
रोटी का गोल टुकड़ा चाहिए-अवश्यमेव जीने के लिए, पर क्या पेट भरने पर ऐसा जीना मानव की अभीप्सा को पूरी तरह बाँध सकेगा? सर्वदा के लिए नहीं? रोटी के अलावा मानव का मन कुछ माँगेगा। कौन देगा वह सन्देश? कौन दिखायेगा अमावस्या की रात में उपेक्षित पड़े नीला चाँद को जो हर मनुष्य को सहज प्राप्त है? सिर्फ़ 'नीला चाँद' जो न तो धर्मोपदेश है, न ही अख़बार का एक पन्ना। आइये फिर खोजें और क्या है इसमें...
‘नई कहानी’ के लेखकों में
एक कमलेश्वर द्वारा रचित यह उपन्यास भारत-पाकिस्तान के बंटवारे एवं हिंदू-मुसलमान के
संबंधों पर आधारित है । सन 2003 में इस उपन्यास के लिए उन्हें साहित्य एकेडमी पुरस्कार
से सम्मानित किया गया ।
इस उपन्यास
का मूल सार यह है कि सदियों से चली आ रही विभाजन की परम्परा बंद होनी चाहिए और
मनुष्य एक मनुष्य की तरह जीवित रह सके। धर्म के नाम पर, भगवान के
नाम पर, जाति
के नाम पर, विचारधारा
के नाम पर, भाषा
के नाम पर और वर्ण के नाम पर विभाजन अब बंद होने चाहिये। कमलेश्वर ने अपनी बात को
पुख्ता तरीके से रखने के लिये सम-सामायिक घटनाओं का उल्लेख किया है जैसे कोसोवो, पूर्वी
तिमोर, सोमालिया, कश्मीर आदि
जगहों पर हो रहे आंदोलन और प्रतिहिंसा। इसके मूल में जाने की लेखक ने कोशिश की है
तो पाया है कि कहीं न कहीं किसी अन्य ताकत ने ये पहचान के संकट खड़े किये और फिर
उसके बाद जब जनता विभाजित हो गयी तो उसका फायदा उठाया, वरना कोई
कारण नहीं है कि दो अलग पहचान के लोग साथ नहीं रह सकते।
कठगुलाब
'कठगुलाब' एक तरह से भारतीय स्त्रियों की पीड़ा एवं संघर्ष का एक जीवंत दस्तावेज़ है। इस सशक्त औपन्यासिक कृति में नारी पर घटित अन्याय, अत्याचार एवं उसकी वेदना के साथ नर-नारी सम्बन्धों की जटिल बुनावट और उसके रेशे-रेशे को व्याख्यायित करने की छटपटाहट का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता है।
‘कठगुलाब’ का प्रतीकात्मक अर्थ है ‘नारी की जिजीविषा।’ इस कृति में मृदुला गर्ग ने रेखांकित किया है कि स्त्रियाँ गुलाब नहीं हैं, जो उग जाने पर अपने आप खिल भी जाता है। वे कठगुलाब हैं, जिन्हें थोड़ी-सी देखभाल के साथ खिलाना भी पड़ता है।
बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न मृदुला गर्ग ने कहानियों एवं उपन्यासों के अलावा नाटक, निबंध, संस्मरण आदि विधाओं में भी लिखा है। स्त्री-पुरुष संबंधों में सेक्स के खुलेपन पर दो टूक विचार व्यक्त होने के कारण उनकी दोनों प्रमुख कृतियां 'चितकोबरा' और 'कठगुलाब' विवादास्पद भी मानी जाती रही हैं।
Latest Hindi Novels 2020
2 comments:
Nice...keep it up!!👍
संक्षिप्त जानकारी लाभप्रद है
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