Sunday 4 April 2021

हिंदी भाषा में समय-समय पर उत्कृष्ट उपन्यास लिखा जाता रहा है । हर समय में कोई न कोई उपन्यास जनमानस पर अमिट छाप छोड़ने में सफल रहा है । अत: इन सभी के बीच किसी एक उपन्यास को सर्वोत्तम (Best Hindi Novels) के रूप में चयन करना असंभव सा प्रतीत होता है । कोई भी रचना किसी खास देश, काल, क्षेत्र इत्यादि को ध्यान में रखकर ही लिखी जाती है, जिसकारण किसी एक उपन्यास को सर्वोत्तम का दर्जा नहीं दिया जा सकता है । इन बातों को ध्यान में रखते हुए नीचे कुछ उपन्यास के नाम बताए गए हैं जो हिंदी के Best Hindi Novels हैं ।  

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पहला गिरमिटिया

यह उपन्यास गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका प्रवास पर आधारित है ।  लेखक गिरिराजकिशोर की सर्वोत्तम रचना है यह । इसकी शैली अत्यंत ही पठनीय है, यदि इसे आपने पढना शुरू कर दिया तो इसे समाप्त किए बगैर आप रूक नहीं सकते । यह कहानी अत्यंत ही प्रेरक है । इस कहानी में वर्णित एक घटना ने गांधीजी के जीवन को हिला कर रख दिया ।

 अंग्रेज़ी में एक शब्द है 'एग्रीमेंट', इसी का बिगड़ा हुआ रूप है गिरमिटिया । यह वह एग्रीमेंट या 'गिरमिट' है जिसके तहत हज़ारों भारतीय मज़दूर आज से डेढ़ सौ साल पहले दक्षिण अफ्रीका में काम की तलाश में गए थे। एक अजनबी देश, जिसके लोग, भाषा, रहन-सहन, खान-पान, एकदम अलग.... और सारे दिन की कड़ी मेहनत के बाद न उनके पास कोई सुविधा, न कोई अधिकार। तभी इंग्लैंड से वकालत कि पढ़ाई पूरी कर 1893 में मोहनदास करमचंद गांधी दक्षिण अफ्रीका पहुंचते हैं । रेलगाड़ी का टिकेट होने के बावजूद उन्हें रेल के डिब्बे से सामान समेत बाहर निकाल फेंका जाता है। इस रंगभेद नीति के पहले अनुभव ने युवा गांधी पर गहरी छाप छोड़ी, उनकी अंतरात्मा दुखी हो उठी । रंगभेद नीति की आड़ में दक्षिण अफ्रीका में काम कर रहे भारतीय मजदूरों पर हो रहे अन्याय गांधी को बर्दास्त नहीं होते और वे उन्हें उनके अधिकार दिलाने के संघर्ष में पूरी तरह जुट जाते हैं। बंधुआ मजदूरों के साथ अपनी एकता को प्रदर्शित करने के लिए अपने आपको 'पहला गिरमिटिया' कहते हैं। 19वीं और 20वीं सदी के दक्षिण अफ्रीका की सामाजिक, राजनीतिक पृष्ठभूमि पर आधारित इस उपन्यास को सन् 2000 के व्यास सम्मान से पुरस्कृत किया गया है। 'शतदल सम्मान' और 'गांधी सम्मान'से सुसज्जित पहला गिरमिटिया गांधी जी को समझने का एक सफल प्रयास है। इसे खरीदने के लिए यहाँ क्लिक  करें ।


न भूतो न भविष्यति

यह उपन्यास स्वामी विवेकानंद बनने के संघर्षों की कहानी है । युवा नरेंद्र की मन:स्थिति क्या थी ? जब उनके अंदर भूचाल आया था । जीवन का लक्षय क्या है ? कैसा कर्म करना चाहिए ? वे सभी संघर्ष जिसकी वजह से युवा नरेंद्र स्वामी विवेकानंद बन गया, इसी पर आधारित यह कहानी है । नरेंद्र कोहली द्वारा रचित इस उपन्यास को वर्ष 2012 का व्यास सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है ।

वे एक सन्यासी थे । उन्होंने अपना सबकुछ त्याग दिया था । मद्रास की एक सभा में उनका परिचय इस प्रकार दिया गया था—वे अपना घर, परिवार, धन, सम्पत्ति, मित्र बंधु, राग द्वेष तथा समस्त सांसारिक कामनाएं त्याग चुके हैं । इस सर्व त्यागी जीवन में यदि अब भी वे किसी से प्रेम करते हैं तो वह भारत माता है, यदि उन्हें कोई दुख है, तो भारत माता तथा उसकी संतान के अभावों और अपमान का दुख है ।       इसे खरीदने के लिए क्लिक  करें ।


काग़ज़ की नाव

यह उपन्यास बिहार में रहने वाले उन परिवारों का वृत्तांत है, जिनके घर से कोई न कोई पुरुष खाड़ी मुल्कों में नौकरी करने गया हुआ है। वतन से दूर जाने वाले यहां छोड़ जाते हैं बुजुर्गों से लेकर बच्चों तक का भरा-पूरा संसार। 

खाड़ी मुल्कों से आने वाले रुपए...और रिश्तों के अंधेरे उजाले। उपन्यास महजबीं और अमजद की बड़ी बेटी महलकष के पारिवारिक तनाव को केंद्र में रखकर विकसित हुआ है। महलकष के ससुर ज़हूर और ख़ाविन्द ज़ाकिर के बीच भावनाओं का जो चित्रण है वह पढ़ने योग्य है। मुख्य कथा के साथ भोलानाथ, कैलाश, बिंदू, सुधा, कांता, राजेश, त्रिसुलिया, क्रांति झा और मुक्ति झा आदि चरित्रों की बेहद मानीख़ेज़ उपकथाएं हैं। सबसे मार्मिक गाथा है मलकषनूर की। मलकषनूर यानी प्रकाश की देवी। मलकषनूर अपने अस्तित्व की रोशनी तलाश कर रही है, उन अंधेरों के बीच जो सदियों से औरत के नसीब का हिस्सा बने हुए हैं। मलकषनूर की इस तलाश का अंजाम क्या है, इसे लिखते हुए नासिरा शर्मा ने विमर्श और वृत्तांत की ऊंचाइयों को छू लिया है। 

नासिरा शर्मा यथार्थ के पथरीले परिदृश्य में उम्मीद की हरी दूब बखूबी पहचान लेती हैं। किस्सागोई उनका हुनर है। उनके पास बेहद रवां दवां भाषा है। सोने पर सुहागा यह कि इस उपन्यास में तो भोजपुरी भी लिखी हुई है। ‘काग़ज़ की नाव’ ज़िंदगी और इनसानियत के प्रति हमारे यकीन को पुख़्ता करने वाला बेहद ख़ास उपन्यास है। नासिरा शर्मा हिंदी कथा साहित्य में अपनी अनूठी रचनाओं के लिए सुप्रसिद्ध हैं। उनकी कथा रचनाएं समय और समाज की भीतरी तहों में छिपी सच्चाइयां प्रकट करने के लिए पढ़ी व सराही जाती हैं। ‘काग़ज़ की नाव’ नासिरा शर्मा का नया और विशिष्ट उपन्यास है। यहाँ से खरीदें । 


दुक्खम सुक्खम

दुक्खम सुक्खम ममता कालिया द्वारा लिखित उपन्यास है जिसे वर्ष 2017 के व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया है । यह दादी और पौत्री के बीच समाहित एक कहानी हैमनीषा जानती है दादी की याद में कहीं कोई स्मारक खड़ा नहीं किया जाएगा । न अचल न सचल । उसके हाथ में यह कलम है । वह लिखेगी अपनी दादी की कहानी । यह उपन्यास यशस्वी कथाकार ममता कालिया के द्वारा लिखित दादी और पौत्री के बहाने मध्यवर्गीय परिवार की स्त्रियों के समाजिक व रुढिवादी जकरन से मुक्ति की कहानी है । मथुरा में रहने वाले लाला नत्थीमल और उनकी पत्नी विद्यावती से यह आख्यान प्रारम्भ होता है । दूसरी पीढी है लीला, भग्गो, कविमोहन और उसकी पत्नी इंदु। तिसरी पीढी है कविमोहन और इंदु की पुत्री मनीषा और प्रतिभा। इस कथा को मथुरा की पृष्ठिभूमि में रची गयी है ।    

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