भारतीय व्यवसाय जगत को ऊँचाई तक ले जाने वाले महान व्यक्तियों के संघर्ष एवं उनकी सूझ-बूझ की गाथा समान्य जनों के लिए प्रेरणा का स्रोत है । उन्होंने जिस प्रकार से व्यवसाय खड़ा किया, उसे बढाया, विश्व स्तर पर ले गया, लाखों लोगों को रोजगार दिया तथा जन कल्याण के द्वारा मानवता की सेवा की, यह कार्य उल्लेखनीय है । आज भारत ही नहीं, अपितु सारी दुनिया उनका लोहा मानती है ।
यहाँ हम उन्हीं महान पुरोधाओं के ऊपर लिखी किताबों का जिक्र करना चाहते हैं । Indian businessman biography books in Hindi शीर्षक के इस पेज पर आप रतन टाटा, अजीम प्रेमजी, नारायण मूर्ती, धीरूभाई अम्बानी व अन्य महान विभूतियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
भारतीय उद्योग जगत के सबसे चमकते सितारों में टाटा ग्रुप सबसे ऊँचे स्थान पर है । इसके विशाल औद्योगिक साम्राज्य के सर्वेसर्वा ‘श्री रतन टाटा’ का विश्व उद्योग-जगत् में अपना विशिष्ट स्थान है। वर्तमान परिवेश में टाटा ग्रुप को न केवल स्वदेश, बल्कि विदेशों में भी अहम स्थान दिलाने में उनकी भूमिका एवं नेतृत्व का सराहनीय योगदान रहा है।
उनकी
सफलताओं और उद्यमिता के लिए उन्हें ‘भारतीय हेनरी फोर्ड’ शीर्षक से सम्मानित किया
गया। उन्हें भारत की ‘सड़क क्रांति का अग्रदूत’ कहकर संबोधित किया गया।
‘लखटकिया नैनो’ इनकी योग्यता एवं दूरदर्शिता का अनुपम उदाहरण है। यह भी उल्लेखनीय है कि जिस औद्योगिक विरासत की देखभाल आज रतन टाटा कर रहे हैं, उसे स्थापित, परिमार्जित एवं परिवर्द्धित करने में ग्रुप के संस्थापक जमशेदजी टाटा से लेकर रतन टाटा के पूर्ववर्ती जे.आर.डी. टाटा तक इस घराने के सभी युगद्रष्टा पुरोधाओं की एक विशिष्ट भूमिका रही है|
टाटा ग्रुप को वर्तमान मुकाम तक पहुँचाने में उन अवस्थापनाओं; कार्य परिवेश एवं मानदंडों का भी एक सशक्त स्थान है; जो इन पुरोधाओं ने स्थापित किए, अत: ‘टाटा परिवार’ के उन सभी चमकते सितारों का प्रस्तुत पुस्तक में उल्लेख किया गया है; जिन्होंने इसके संचालन एवं इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए अनवरत कार्य किया।
‘बिजनेस कोहिनूर रतन टाटा’ व्यवसायी, व्यापारी, उद्यमी, सामाजिक
कार्यकर्ता, राजनीतिक
ही नहीं, सभी
आयु वर्ग के पाठकों के लिए प्रेरणादायी एवं मार्गदर्शक सिद्ध होगी।
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समाजसेवी, परोपकारी सफल बिजनेसमैन अजीम प्रेमजी की प्रेरक जीवनगाथा।
‘‘एक सामान्य मनुष्य में असामान्य कार्य करने की अपार क्षमता होती है। जरूरत है बड़ी सोच रखने की।’’ यह मूलमंत्र है, विप्रो के अध्यक्ष अजीम प्रेमजी का। इस मूलमंत्र को अपनाकर उन्होंने अपने जीवन में सफलता की अनगिनत सीढ़ियाँ चढ़ने में कामयाबी हासिल की ।
24 जुलाई 1945 को जनमे हाशिम प्रेमजी अमेरिका की स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में जब विद्युत् इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, तभी पिता के अचानक निधन के कारण उन्हें स्वदेश लौटकर पारिवारिक व्यवसाय सँभालना पड़ा।
उनके व्यापारिक कौशल और योग्यता के बल पर विप्रो ने अनेक क्षेत्रों में कार्य विस्तार किया। प्रसाधन तथा अन्य घरेलू सामग्री में अग्रणी विप्रो आज कंप्यूटर के क्षेत्र में भी भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में सम्मिलित है। सरल-सहज अजीम प्रेमजी ने विलक्षण उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं।
सन् 2000 में ‘एशियावीक’ पत्रिका ने उन्हें विश्व के 20 सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्तियों में शामिल किया।
वे ‘फोर्ब्स’ की 2001 से 2003 की विश्व की 50 सर्वाधिक धनी व्यक्तियों की सूची में भी शामिल थे। सन् 2004 में ‘टाइम्स’ पत्रिका ने उन्हें विश्व के 100 सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल किया।
सन् 2005 में भारत सरकार ने उन्हें प्रतिष्ठित ‘पद्मभूषण’ से तथा 2011 में ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किया।
बच्चों की पढ़ाई के लिए उन्होंने ‘अजीम प्रेमजी फाउंडेशन’ की स्थापना की। यह बिना लाभवाला संगठन है। इसका उद्देश्य बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देकर उन्हें ऊपर उठाना; समानता का भाव पैदा करना और उन बच्चों को समाज में सम्मानपूर्वक जीने की कला सिखाना है। इस संगठन की स्थापना 2001 में हुई और देश के 13 राज्यों में यह कार्यशील है।
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जनसामान्य के
लिए भी एक प्रेरणादायी पुस्तक “ कॉरर्पोरेट गुरू
नारायण मूर्ति ”
सन् 1981 में अपनी पत्नी श्रीमती सुधा मूर्ति से दस हजार रुपए लेकर जब उन्होंने इस कंपनी की स्थापना की थी, तब कोई स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकता था कि वर्ष 1999 आते-आते ही इसकी ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँच जाएगी तथा कंपनी नास्डैक (Nasdaq) में सूचीबद्ध होगी।
किन विपरीत परिस्थितियों में नारायण मूर्ति ने अपनी कंपनी का विकास किया, उसका थोड़ा सा अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि एक टेलीफोन कनेक्शन के लिए उन्हें पूरे साल प्रतीक्षा करनी पड़ी। फोन करने के लिए उन्हें एस.टी.डी. की दुकान पर जाना पड़ता था। उन दिनों कंप्यूटर आयात होते थे। इंफोसिस को अपने काम के लिए विदेश से कंप्यूटर मँगवाने में ही तीन साल लग गए। कंपनी को परेशानियों के भँवर से निकालकर सफलता के उत्कर्ष तक पहुँचाने का हौसला नारायण मूर्ति का ही था।
सात लोगों
के साथ उन्होंने जिस कंपनी की स्थापना की थी, आज उसमें एक लाख से अधिक कर्मचारी हैं। जो कंपनी
मात्र दस हजार रुपए की पूँजी से शुरू हुई थी, उसका वार्षिक राजस्व (वित्तीय वर्ष 2009) बीस हजार
करोड़ रुपए से अधिक है। क्या कुछ और कहने की आवश्यकता है?
इन्फोसिस
की विस्मयजनक उन्नति का श्रेय श्री एन.एम. नारायण मूर्ति की कल्पनाशीलता और
दूरदृष्टि को जाता है। उन्होंने बीस वर्षों तक कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी
की हैसियत से अपनी प्रतिभा,
लगन, परिश्रम से
सींचकर इसे पुष्पित-पल्लवित किया।
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धीरुभाई अंबानी
अगर आपको परीकथाओं पर विश्वास नहीं है तो आप इस कहानी को जरूर पढ़िए.
यह किसी परीकथा से कम नहीं है. एक आदमी जो हाईस्कूल की शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाया. वह इतने गरीब परिवार से था कि खर्चा चलाने के लिए उसे अपनी किशोरावस्था से ही नाश्ते की रेहड़ी लगाने से लेकर पेट्रोल पंप पर तेल भरने तक का काम करना पड़ा. ऐसे लड़के ने जब एक वृद्ध के तौर पर दुनिया को अलविदा कहा, तो उसकी सम्पति का मूल्य 62 हजार करोड़ रूपये से भी ज्यादा था.
अगर आप अब
भी इस शख्सशियत को नहीं पहचान पाएं, तो हम बात कर रहे हैं, धीरूभाई
अंबानी की. एक ऐसा सफल चेहरा जिसने हरेक गरीब को उम्मीद दी, कि सफल
होने के लिए पैसा नहीं नियत चाहिए. सफलता उन्हीं को मिलती है जो उसके लिए जोखिम
उठाते हैं.
धीरूभाई
ने बार — बार साबित किया कि जोखिम लेना व्यवसाय का नहीं आगे बढ़ने का मंत्र है.
धीरूभाई अंबानी की जीवन गाथा सही मायने में एक आम भारतीय के ‘रंक से राजा’ बनने की कहानी है। वे एक गरीब स्कूल-मास्टर के घर में पैदा हुए और विश्व के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक बनकर अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘फोब्र्स-500’ में शुमार किए जाने लगे। उन्हें भारत का सर्वाधिक क्रांतिकारी एवं ऊर्जावान उद्यमी माना जाता है। वे एक महान दृष्टव्य वाले व्यक्ति थे।
उनमें महान उद्यमशीलता विद्यमान थी। उन्होंने प्रत्येक अवसर का लाभ उठाते हुए व्यापार में अभूतपूर्व प्रगति की। उद्योग जगत में उनका यह अभूतपूर्व उत्थान भारतीय उद्योग के इतिहास की सर्वाधिक उल्लेखनीय घटना है। उन्हें व्यापक रूप से भारतीय इक्विटी-कल्ट (शेयर-संस्कृति) को आकार देने के लिये जाना एवं सराहा जाता है।
उनकी अग्रणी पहल ने लाखों छोटे निवेशकों को बाजार
में निवेश हेतु आकर्षित किया जिसमें पहले केवल कुछ चुनिंदा वित्तय संस्थानों का ही
वर्चस्व रहता था।
उनकी
पहल और प्रयासों ने उन आम लोगों के लिये अरबों रुपयों का सृजन कर दिखाया, जिन्होंने
उन पर और उनके दृष्टव्य पर भरोसा किया। उन्हें 20वीं सदी के भारतीय उद्यमी पुरस्कार
से सम्मानित किया गया और शताब्दी का धन-संपदा का सर्वश्रेष्ठ सृजक माना गया है।
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उपरोक्त जानकारी आपको कैसी लगी ? कृपया टिप्पणी कर अवगत करायें । धन्यवाद ।
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