Saturday 10 July 2021

हिंदी की सबसे अच्छी कविता : आदिमानव ने सर्वप्रथम जिस लयात्मक कथन से आनंद को व्यक्त किया वह पद्य के रूप में था । आदिकाल से ही पद्य रचना का प्रचलन है । प्राचीन भारत में अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम पद्य ही था । पद्य अर्थात कविता मनुष्य के भावनात्मक जीवन को प्रस्तुत करने का प्रमुख साधन है । आज के समय में भी कविता या गीत का असर प्रत्येक मनुष्य पर दिखता है । इसके बिना मनुष्य के मन में उठे प्रेम की भावना को व्यक्त नहीं किया जा सकता। चाहे यह प्रेम प्रेमी-प्रेमिका का हो, मां और उसके बच्चे के बीच का हो, दोस्तों के बीच की भावना हो या कोई अन्य संबंध व्यक्त करने वाली हो । कविता एक प्रमुख माध्यम है ।

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The Best Hindi Kavita कौन सी है? जब सबसे अच्छी कविता की बात आती है तब हम यह कह सकते हैं कि पाठक के मन की भावना की अभिव्यक्ति जिस कविता में हो वही सबसे अच्छी है अर्थात जिस कविता में  मनुष्य अपनी भावना को, अपने दुख: सुख को, हर्ष-उल्लास को महसूस करता है, तो उस समय वह कविता उसे सबसे अच्छी लगती है । इस प्रकार किसी एक कविता को सबसे अच्छी कविता नहीं कही जा सकती है । परंतु इस श्रेणी में बहुत सारी कविताऐं रखी जा सकती है । जिनमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण हो सकती है ।


जितने लोग उतने प्रेम


हिंदी के वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूड़ी को वर्ष 2018 में उनके कविता संग्रह जितने लोग उतने प्रेमके लिए व्यास सम्मान से पुरुष्कृत किया गया ।  यह कविता संग्रह उनके 50 से अधिक वर्षों के काव्यानुभव के उपरांत आया । उनका यह 12 वां कविता संग्रह है । ऐसा कहा जाता है कि वे गद्य में कविता नहीं रचते, बल्कि कविता में गद्य रचते हैं । वे अपने हर कविता संग्रह में अपनी कविता के लिए अलग-अलग तरह के नव गद्य को गढते रहें हैं ।  यही कारण है कि अन्य कवियों की तरह उनकी कविता में न केवल कहानियां होती है तथा न तो वे निबंध की रचना करते हैं । वे अक्सर कहते हैं कि कविता जैसी कविता से बचना चाहिए । उनकी  कविता के धरातल के कुछ अलग ही रंग है ।जितने लोग उतने प्रेम’ की कविताएँ भी कविता के शिल्प और प्रेम के रूप को रूढ़ि नहीं बनने देतीं ।


मैं वह ऊंचा नहीं जो मात्र ऊंचाई पर होता है

कवि हूं और पतन के अंतिम बिंदु तक पीछा करता हूं

हर ऊंचाई पर दबी दिखती है मुझे ऊंचाई की पूंछ

लगता है थोड़ी सी ऊंचाई और होनी चाहिए थी...


यह कविता वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूड़ी के 'ऊंचाई है कि' शीर्षक से ली गयी है


अकाल में सारस

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केदारनाथ सिंह की कविताओं का संग्रह ‘अकाल में सारस’ आज की हिंदी कविता को एक सर्वथा नया मोड़ देने की सार्थक कोशिश है। इस संग्रह के साथ यह उम्मीद बनी रहेगी कि कविता अपनी जड़ों में ही फैलती है और उसी से प्राप्त ऊर्जा के बल पर वह अपने समय, परिवेश, आदमी के संघर्ष, प्रकृति में धडक़ती हुई जिजीविषा को उपयुक्त शब्द देने में कामयाब होती है।

‘अकाल में सारस’ में जनपदीय चेतना में रची-बसी भाषा की ऐन्द्रिकता, अर्थध्वनि, मूत्र्तता, गूँज और व्याप्ति को पहचानना उतना ही सहज है जितना साँस लेना! पर इस सहज पहचान में बहुत कुछ है जो उसी के जरिए जीवन की छिपी हुई या अधिक गहरी सच्चाइयों के प्रति उत्सुक बनाता है। एक तरह से देखें तो इन कविताओं की सरलता उस विडम्बनापूर्ण सरलता का उदाहरण है जो वस्तुओं में छिपे जीवन-मर्म को भेदकर देखने की अनोखी हिकमत कही जा सकती है। 

‘अकाल में सारस’ में भाषा के प्रति अत्यन्त संवेदनशील तथा सक्रिय काव्यात्मक लगाव एक नए काव्य-प्रस्थान की सूचना देता है। भाषा के सार्थक और सशक्त उपयोग की सम्भावनाएँ खोजने और चरितार्थ करने की कोशिश केदार की कविता की खास अपनी और नई पहचान है। प्रगीतों की आत्मीयता, लोक-कथाओं की-सी सरलता और मुक्त छन्द के भीतर बातचीत की अर्थसघन लयात्मकता का सचेत इस्तेमाल करते हुए केदार ने अपने समय के धडक़ते हुए सच को जो भाषा दी है वह यथार्थ की तीखी समझ और संवेदना के बगैर अकल्पनीय है।

केदार के यहाँ ऐसे शब्द कम नहीं हैं जो कविता के इतिहास में और जीवन के इस्तेमाल में लगभग भुला दिए गए हैं, पर जिन्हें कविता में रख-भर देने से सुदूर स्मृतियाँ जीवित वर्तमान में मूर्त हो उठती हैं। परती-पराठ, गली-चौराहे, देहरी-चौखट, नदी-रेत, दूब, सारस जैसे बोलते-बतियाते केदार के शब्द उदाहरण हैं कि उनकी पकड़ जितनी जीवन पर है उतनी ही कविता पर भी। ‘अकाल में सारस’ एक कठिन समय की त्रासदी के भीतर लगभग बेदम पड़ी जीवनाशक्ति को फिर से उपलब्ध और प्रगाढ़ बनाने के निरन्तर संघर्ष का फल है।


साये में धूप

साये में धूप दुष्य्त कुमार की लोकप्रिय रचना है । यह उस दौर की रचना है, जब देश कुछ दशक पहले ही आज़ाद हुआ था, लेकिन राजनीति के प्रति निराशा समाज में और फिर साहित्य में साफ़ झलकने लगी थी। कुछ प्रसिद्ध ग़ज़लें जैसे 'हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए', 'कहाँ तो तय था चरागाँ हर एक घर के लिए' आपने अवश्य ही सुनी होंगी क्योंकि राजनितिक विश्लेषण करते हुए इन ग़ज़लों के माध्यम से नाकामियों को दर्शाया जाता है। दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों में ग़रीबों के प्रति सहानुभूति साफ़ झलकती है। उनकी मज़बूरियों को वह अपनी ग़ज़लों में स्थान देते हैं क्योंकि स्वतंत्रता के बाद सरकार से सबसे ज़्यादा किसी वर्ग को उम्मीद थी तो वह इन्हीं को थी।

ऐसा नहीं है कि 'आम आदमी' की आवाज़ उस समय सिर्फ़ दुष्यंत कुमार जी ने ही उठाई थी। तमाम अन्य साहित्यकारों ने भी इसके लिए आवाज़ उठाई थी, लेकिन ज़्यादातर लोगों ने गद्य में– ज़्यादातर आलोचना या व्यंग– ही किया था। दुष्यंत कुमार इसे ग़ज़लों के रूप में लाकर एक अलग ही आवाज़ दे देते हैं।

दुष्यंत कुमार ने सिर्फ़ जनता की छटपटाहट को ही स्थान दिया हो ऐसा नहीं है। कई ग़ज़लों में आशावादी स्वर रहे हैं। कुछ शेर देखिए-

'एक चिंगारी कहीं से ढूंढ़ लाओ दोस्तों,

इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।'

'कैसे आकाश में सुराख़ नहीं हो सकता,

एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों।'


टोकरी में दिगंत-थेरी गाथा 2014

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इस कविता संग्रह के लिए मशहूर साहित्यकार अनामिका को वर्ष 2020 के लिए साहित्य एकेडमी पुरस्कार प्रदान किया गया है । यह किसी महिला को हिंदी में किसी कविता संग्रह के लिए दी जाने वाली पहली पुरस्कार है ।

इस संग्रह में अपने समय की सामान्य स्त्रियों की व्यथा को छोटे-छोटे दृश्य, प्रसंग और थेरियों के रुपक से गूंथी हुई एक लम्बी कविता है । संग्रह के नाम में 2014 का जो तिथि-संकेत दिया गया है, शायद  यह पूरे संग्रह का बलाघात थेरी गाथा के बजाय इस समय-सन्दर्भ पर ही है । संग्रह के शुरू में एक छोटी-सी भूमिका है, जिसे कविताओं के साथ जोड़कर देखना चाहिए । बुद्ध अनेक कविताओं के केंद्र में हैं, जो बार-बार प्रश्नांकित भी होते हैं और बेशक एक रोशनी के रूप में स्वीकार्य भी ! इस नए संकलन में अनेक उद्धरणीय काव्यांश या पंक्तियाँ मिल सकती हैं, जो पाठक के मन में टिकी रह जाती हैं ।

बिना किसी तार्किक संयोजन के यह पूरा संग्रह एक ऐसे काव्य-फलक की तरह है, जिसके अंत को खुला छोड़ दिया गया है । स्वयं इसकी रचयिता के अनुसार "वर्तमान और अतीत, इतिहास और किंवदँतियाँ, कल्पना और यथार्थ यहाँ साथ-साथ घुमरी परैया-सा नाचते दीख सकते हैं ।" आज के स्त्री-लेखन की सुपरिचित धरा से अलग यह एक नई कल्पनात्मक सृष्टि है, जो अपनी पंक्तियों को पाठक पर बलात थोपने के बजाय उससे बोलती-बतियाती है, और ऐसा करते हुए वह चुपके से अपना आशय भी उसकी स्मृति में दर्ज करा देती है । 

शायद यह एक नई काव्य-विधा है, जिसकी ओर काव्य-प्रेमियों का ध्यान जाएगा । समकालीन कविता के एक पाठक के रूप में लगता है कि यह काव्य-कृति एक नई काव्य-भाषा की प्रस्तावना है, जो व्यंजन के कई बंद पड़े दरवाजों को खोलती है और यह सब कुछ घटित होता है एक स्थानीय केंद्र के चारों ओर । कविता की जानी-पहचानी दुनिया में यह सबाल्टर्न भावबोध का हस्तक्षेप है, जो अलक्षित नहीं जाएगा ।

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