Thursday 5 August 2021

हिंदी के नए उपन्यास से तात्पर्य ऐसे उपन्यास से है, जिसकी रचना विगत कुछ महीनों या विगत वर्षों में की गयी है । इस समयावधि में रचित सभी उपन्यास को यहाँ उल्लेखित करना संभव नहीं है, फिर भी चर्चित उपन्यासों को समेटने की पूरी कोशिश की जा रही है । उन उपन्यासों को भी लिया जा सकता है, जिन्हें कोई विशिष्ट पुरस्कार नहीं मिला हो, परंतु संपादक मंडल को उनमें कोई विशिष्टता नजर आई हो । फिर भी यहाँ New Novels in Hindi के पेज पर नए उपन्यासों पर ही चर्चा करने का प्रयास किया जाएगा ।  प्रस्तुत है कुछ महत्वपूर्ण चर्चाऐं ।    

New Novels in Hindi, हिंदी के नए उपन्यास, Hindi eBooks

पाटलिपुत्रकी सम्राज्ञी

यह उपन्यास वरिष्ठ साहित्यकार शरद पगारे की कृति है, जिसे वर्ष 2020 के व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया है ।  यह पुस्तक 2010 में प्रकाशित हुई थी ।

शरद पगारे इतिहास के विद्वान, प्रध्यापक और शोधकर्ता  रहे हैं, इसके साथ ही वे किस्सागोई में भी काफी निपुण हैं । उन्होंने वृन्दावन लाल वर्मा की ऐतिहासिक उपन्यास लेखन की परंपरा को आगे बढाया है । पगारे शासकीय महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत होकर स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं ।

उन्होंने इस उपन्यास की कथावस्तु मौर्य कालीन इतिहास से उठाया है । इस उपन्यास के अनुसार अशोक की मां का नाम धर्मा था । धर्मा रूप, गुण, कला और सौंदर्य में अप्रतिम थीं, इसीलिए सम्राट बिन्दुसार ने धर्मा को 'सुभद्रांगी' यानी शुभ अंगों वाली कहा था ।

धर्मा ने मौर्य साम्राज्य में अपनी स्थिति को समझा और अपने पुत्र के लिए ऐसी कूटनीतिक चालें चलीं, जिससे उनका बेटा महाराज कुमार अशोक अंततः अशोक सम्राट बन गया । बचपन से ही अपनी मां से प्रियदर्शी पुत्र अशोक को जो शिक्षा मिली उसी के कारण कालान्तर में वह अपनी लोककल्याणकारी नीतियों को लागू कर पाया और 'देवानाम प्रिय’, ‘प्रियदर्शीके नाम से प्रसिद्ध हो गया ।   


कागज की नाव

वरिष्ठ साहित्यकार नासिरा शर्मा को उनकी पुस्तक कागज की नाव के लिए वर्ष 2019 के व्यास सम्मान से प्रतिष्ठित किया गया । नासिरा शर्मा हिंदी और फारसी की प्रमुख लेखिका हैं । वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य कला और सांस्कृतिक विषयों की विशेषज्ञ हैं। उनके उपन्यास पारिजात  और कुइयांजानको भी सम्मानित किया जा चुका है ।

कागज की नाव में बिहार के एक जिला के मुस्लिम परिवार के माध्यम से सदियों से पनपी गंगा-जमनी तहजीब की मार्मिक और हृदयस्पर्शी कहानी लिखी गयी है । जिसमें जहूर मियां जैसे पात्र के माध्यम से हमारे आसपास के जीवन और चुनौतियों को पेश किया गया है । 


पोस्ट बॉक्स नं 203-नाला सोपारा

'पोस्ट बॉक्स नं- 203 नाला सोपारा' चर्चित लेखिका चित्रा मुद्गल द्वारा लिखित उपन्यास है, जिसे साहित्य अकादमी पुरस्कार 2018 से सम्मानित किया गया है । 

यह एक विशिष्ट उपन्यास है जो समाज के खास वर्ग किन्नरपर लिखी गयी है । उनकी जीवन शैली भिन्न है तथा आम लोगों के लिए रहस्यमयी है । सामान्य लोगों के लिए उनकी ज्यादतियां और अजीबोगरीब हरकतें ही सबसे ज्यादा आकर्षण है, परन्तु वे भी एक मनुष्य हैं, उनके सीने भी दिल धड़कता है, उनकी भी माताऐं है, उनके भी बचपन की यादें हैं । 

वैसे भी किन्नरों पर बहुत कम लिखी गयी है । जब एक सिद्धहस्त लेखिका की लेखनी इस विषय पर चलती है तो एक विशिष्ट रचना जन्म लेती है । यह एक ऐसा उपन्यास है, जिसने साहित्य एकेडमी के निर्णायक मंडल के सदस्यों को प्रभावित किया, जिस कारण उन्हें इस पुरस्कार से नवाजा गया ।  चित्रा मुद्गल बहुआयामी प्रतिभा की धनी है । उनके द्वारा कई उपन्यास लिखी गयी है । कई वर्षों के लम्बे अनुभव के बाद उन्होंने यह उपन्यास लिखी है । यही कारण है कि वह जो लिखती है एक नजीर बन जाती है ।   


दुक्खम-सुक्खम

हिंदी उपन्यास 'दुक्खम-सुक्खम' के लिए ममता कालिया को केके बिरला फाउंडेशन की ओर से 27वां व्यास सम्मान 2017 प्रदान किया गया। इस सम्मान के लिए उन्हें साढ़े तीन लाख रुपये व प्रमाण पत्र दिया गया।

ममता कालिया ख्यातिलब्ध साहित्यकार हैं। दुक्खम सुक्खम के अलावा ‘बेघर’, ‘नरक-दर-नरक’, ‘सपनों की होम डिलिवरी’, ‘कल्चर वल्चर’, ‘जांच अभी जारी है’, ‘निर्मोही’, ‘बोलने वाली औरत’, ‘भविष्य का स्त्री विमर्श’ समेत कई  पुस्तकें हैं। उनकी कहानियां भी काफी चर्चित रही हैं।

उनकी कहानियों में मध्यवर्ग का अलग ही चित्रण मिलता है। अपने पात्रों का सजीव चित्रण करने वाली ममता कालिया की भाषा सहज और सरल होती है। यही कारण है कि उन्होंने अपनी समकालीन लेखिकाओं से अलग मुकाम बनाया है।  

उपन्यास की लेखिका ममता कालिया ने बताया कि यह एक संयुक्त परिवार के आधुनिकीकरण की कहानी है। उन्होंने कहा कि अपनी रचना का ताना-बाना बुनने के लिए लेखक को कभी समय से पीछे जाना पड़ता है तो कभी समय से आगे निकलकर अपनी कल्पना को शब्दों में पिरोना पड़ता है।

उपन्यास में तीसरी पीढ़ी की किरदार मनीषा जहां पुरानी और नई पीढ़ी के बीच सेतु का काम करती है। वहीं, उसकी बहन प्रतिभा सारी रूढि़यों को तोड़कर बिंदास जीवन जीना चाहती है। उपन्यास के विभिन्न किरदारों के बीच चलने वाले वैचारिक द्वंद को लेखिका ने बखूबी प्रस्तुत किया है।


काटना शमी का वृक्ष: पद्मपंखुरी की धार से 

प्रमुख साहित्यकार सुरेंद्र वर्मा की कृति ‘काटना शमी का वृक्षपद्मपंखुरी की धार से’ को वर्ष 2016 के लिए 26 वें व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया है।

सुरेन्द्र वर्मा की कृतियों की एक बड़ी खासियत है उनमें दृश्य, काव्य और कथा का समन्वय, जिसे इस उपन्यास में आप आद्योपांत पाएंगे। इसमें उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों के साथ ही नाट्य व सिनेमाई युक्तियों और तकनीकों का अत्यंत बारीक संयोजन किया है। अतीत और वर्तमान की जैसी मिलीजुली चहलकदमी पूरे उपन्यास में है, वह सुरेन्द्र वर्मा के ही बूते की बात थी।

काटना शमी का वृक्ष : पद्मपंखुरी की धार से’ में सुरेन्द्र वर्मा ने कालिदासयुगीन भारत को जीवंत कर दिया है। उनके लिए कालिदास मनुष्यता और उसकी भारतीय व्याख्या के सबसे समर्थ प्रतिनिधि हैं। इस उपन्यास में कालिदास के बहाने एक ओर साधारण जनता की सरलता और भोलेपन का तो दूसरी ओर नागरिक जीवन के विलास और कुचक्र का सजीव चित्रण है। वहीं उपन्यास के तीसरे कोण पर सत्ता का घात-प्रतिघात और संस्थानों की जड़ता है जिसे उपन्यासकार ने बड़ी संजीदगी से उजागर किया है। कालिदासकालीन भारत को मथने वाले प्रश्न हों या उनमें निहित विडंबनाएं  और संभावनाएं, अपने पूरे वेग, पूरी कसमसाहट के साथ इस उपन्यास में मौजूद हैं।


पारिजात

वरिष्ठ साहित्यकार नासिरा शर्मा को वर्ष 2016 के लिए साहित्य एकेडमी पुरस्कार से उनकी कृति पारिजात के लिए सम्मानित किया गया । यह उपन्यास गंगा-जमुनी संस्कृति को परत दर परत उधेरते हुए मानवीय रिश्तों की बुनावट के एहसास को पाठक के अंदर जीवंत करता है । इसमें धर्मों के आपसी सामंजस्य को बखूबी दिखाया गया है ।

आज   हमारी   आर्थिक   नीति   ने   भोगवादी   संस्कृति   के   विस्तार   को   बहुत   विकसित किया   है   और   यह   नीति   प्रत्यक्ष   या   अप्रत्यक्ष   रूप   से   इसका   समर्थन   दे   रही  इससे   हमारे   बीच   परस्पर   बिखराव   आने   लगा   है   और   साथ   ही   साथ   हमारे सम्बन्धों   में   भी   दरार   पड़ने   लगी   है।   आज   व्यक्ति   ने   अपनी   प्रसिद्धि   और   आर्थिक   रूप   से   मजबूत   होने   के   लिए   के   पीछे   अपने   परिवार   और   समाज   को  भी   भुला   दिया   है।   इसी   होड   में   वह   अपने   माता - पिता ,  बच्चे   तक    को   भी  भूल  जाते   हैं।   आज   के   युग   में   अधिक   आधुनिक   बनती   जा   रही   पीढ़ी   और   इससे   परम्परागत   मूल्यों   का   हो   रहा   हृास   बताना   ही   शोध   का   मुख्य   है। ऐसा इसलिए   हो   रहा   है   कि   हम   परस्पर   प्रेम ,  त्याग ,  समपर्ण   की   संस्कृति   से दूरहोते   चले   जा   रहे   हैं।   इसमें   सांस्कृतिक   परिवेश   की   गिरती   गरिमा   का   ही      चित्रण   नहीं   किया   है   बल्कि   उनके   मूल   तक   जाने   का   प्रयास   भी   किया   है   कहीं - कहीं   इनका   हल   ढूँढने   का   प्रयास   भी   किया   है।


इन्हीं हथियारों से- अमरकांत

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश में शिक्षा,संचार,व्यापार और यातायात के साधनों की उपलब्धता के कारण शहरी और ग्रामीण संस्कृतियों का सम्मिलन बहुत तेज़ी से हुआ जिसका प्रभाव यह हुआ कि अबतक की स्थापित सामाजिक,नैतिक,धार्मिक मान्यताओं और मानवीय मूल्यों का क्षरण होना शुरू हुआ जिसकी झलक इस समय के कथा-साहित्य में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। इस उपन्यास की पात्र कनेरी विवाहोपरांत भी चनरा से संबंध रखती है सदाशयव्रत जब चनरा के विषय में पूछता है तो कहती है- “मेरे करम जले दरिद्र बाप ने मुझे बूढ़े पेटमैन के हाथों बेच दियापर इस आदमी में कुछ है नहींऊपर से हमेशा खुर-खु किये रहता है।चनरा रेलवे में मजदूर है, बाबू साहबबड़ा नेक हैहिम्मती है,पक्का मर्द हैमौका बात पर जान देने वाला मन है यही मेरा सब कुछ है। बलिया के धार्मिक, सांस्कृतिकराजनीतिक जीवन का लेखा-जोखा अमरकांत ने पर्याप्त विस्तार से प्रस्तुत किया है|

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