यहाँ आपके समक्ष हिंदी उपन्यास साहित्य में कुछ
पुस्तकों पर चर्चा की जा रही है, जिसमें कुछ अत्याधुनिक रचित उपन्यास हैं तो कुछ वे उपन्यास
हैं जो वर्षों से Hindi Upanyas Sahitya के पटल पर चमक रहे हैं ।
वर्तमान दसक
2020 में छपे कुछ सर्वाधिक पढे गये उपन्यास को भी यहाँ रखा गया है जो अत्यंत ही रोचक
है, जिसे पढने के लिए युवा मन आतुर रहता है तथा उनके मन में उन
पुस्तकों को जानने की इच्छा रहती है । उनसे संबंधित हमारे पास दस किताबों की एक लिस्ट
है । जिसे जानने के लिए दस किताबों की लिस्ट पर क्लिक
करें ।
उपरोक्त लिंक पर जाकर उन दस किताबों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के बारे में आप
सभी जानते हैं । उनकी बहुमूल्य रचना बरबस आपके सम्मुख उपस्थित रहती है । हिंदी जानने
वालों में ऐसा कोई नहीं है जिसने प्रेमचंद का साहित्य न पढा हो । चाहे उनके द्वारा
लिखित कहानियाँ हो या उपन्यास किसी परिचय का मोहताज नहीं है । विश्व साहित्य में भी
उनकी रचनायें उल्लेखनीय है । उन्होंने जो भी रचनायें लिखीं, वे हिंदी साहित्य के लिए मील
का पत्थर साबित हुई । हमने उनके द्वारा लिखित दस उपन्यासों की एक सूची तैयार की है
। यदि आप उन्हें पढना चाहते हैं तो निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करें ।
नरेंद्र कोहली हिंदी के जानेमाने साहित्यकार हैं, जिन्होंने
नई धारा का सूत्रपात किया । उन्होंने पौराणिक कथाओं को आधार बनाकर साहित्य रचना की
। उन्हें पद्मभूषण द्वरा सम्मानित किया गया है । उनकी रचना ‘न
भूतो न भविष्यति’ के लिए उन्हें २०१२ का व्यास सम्मान प्रदान किया
गया है । उनकी रचनाओं के बारे में कहा जाता है कि मानवता के कल्याण के लिए
नैतिकता का उच्च स्तर बनाये रखने के लिए लिखी गयी है, जो
न तो साम्प्रदायिक है और न ही पुनरुत्थानवादी । इन कथाओं के सभी पात्र नये रुपों
में सामने आये हैं । यदि आप उन्हें पढना चाहते हैं तो निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करें ।
नरेंद्र कोहली द्वारा रचित दस उपन्यास
चंद्रकांता एक अति रोचक कथा है । इसके कथारस का पान करने के लिए जो
व्यक्ति हिंदी नहीं जानते थे, वह भी हिंदी सीखी और इसका आनंद लिया । अर्थात
बाबू देवकीनंदन खत्री ने ऐसी रचना लिखी, जिसने हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार किया ।
कहानी
दो प्रेमियों के बारे में एक रोमांटिक कल्पना है जो प्रतिद्वंद्वी राज्यों से
संबंधित हैं, विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमार वीरेंद्र सिंह।
विजयगढ़ राजा के दरबार के सदस्य क्रूर सिंह चंद्रकांता से शादी करने और सिंहासन
संभालने के सपने देखता हैं। जब क्रूर सिंह अपने प्रयास में असफल हो जाता है, तो
वह राज्य से भाग जाता है और चुनारगढ़ के शक्तिशाली पड़ोसी राजा शिवदत्त से मित्रता
कर लेता है। क्रूर सिंह किसी भी कीमत पर चंद्रकांता को वश में करने के लिए शिवदत्त
का साथ देता है। शिवदत्त चंद्रकांता को पकड़ लेता है और शिवदत्त से दूर भागते समय चंद्रकांता
खुद को एक तिलिस्म में कैद पाता है। उसके बाद कुंवर वीरेंद्र सिंह ने तिलिस्म को
तोड़ा और अय्यार की मदद से शिवदत्त से लड़ाई की। यदि आप चंद्रकांता की कहानी पढना चाहते हैं निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करें
।
20 वीं सदी के सबसे लोकप्रिय बंगाली उपन्यासकारों में से एक शरत
चंद्र चट्टोपाध्याय ने स्पष्ट ईमानदारी और बुनियादी यथार्थवाद को दर्शाती कहानियां
लिखीं। उनकी कई रचनाएँ उस दौर में ग्रामीण बंगाली समाज में महिलाओं की दुर्दशा और
उत्पीड़न का प्रतिनिधित्व करती हैं। उन्होंने उन सामाजिक अंधविश्वासों और संकीर्ण
मानसिकता के बारे में निंदा की और लिखा जो देश को घेरे हुए थे। शरत चंद्र का
चंद्रनाथ, चंद्रनाथ और सरयू की प्रेम कहानी को दर्शाने वाला एक लोकप्रिय उपन्यास
है। शरतचंद्र ने बचपन में बंधे संबंधों की जटिलताओं को जिस तरह से चित्रित किया है, वह
पढ़ने योग्य है। जिस तरह से चंद्रनाथ समाज द्वारा लगाई गई झोंपड़ियों को
तोड़ते हुए अवरोधों को दूर करते हैं, समय के साथ उनके प्यार को गहरा और मजबूत बनाता
है।
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित उपन्यास
उपरोक्त ब्लॉग में वर्णित उपन्यास को आप पढकर देखें, यदि यह संग्रह आपके पसंद का है तो एक कॉमेंट अवश्य करें ।
हिंदी अन्य प्रमुख साहित्यकारों की रचनायें पढना चाहते हैं | मैला
आँचल हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे
उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें
वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं भी घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त
जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। मैला आँचल का कथानायक एक युवा डॉक्टर है जो अपनी
शिक्षा पूरी करने के बाद एक पिछड़े गाँव को अपने कार्य-क्षेत्र के रूप में चुनता है, तथा
इसी क्र म में ग्रामीण जीवन के पिछड़ेपन, दु:ख-दैन्य, अभाव, अज्ञान, अन्धविश्वास के साथ-साथ तरह-तरह के सामाजिक
शोषण-चक्र में फँसी हुई जनता की पीड़ाओं और संघर्षों से भी उसका साक्षात्कार होता
है। कथा का अन्त इस आशामय संकेत के साथ होता है कि युगों से सोई हुई ग्राम-चेतना
तेजी से जाग रही है। कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की इस युगान्तरकारी औपन्यासिक कृति
में कथाशिल्प के साथ-साथ भाषा और शैली का विलक्षण सामंजस्य है जो जितना
सहज-स्वाभाविक है, उतना ही प्रभावकारी और मोहक भी। ग्रामीण अंचल की
ध्वनियों और धूसर लैंडस्केप्स से सम्पन्न यह उपन्यास हिन्दी कथा-जगत में पिछले कई
दशकों से एक क्लासिक रचना के रूप में स्थापित है।
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4 comments:
Nicely written
Nice...
Lovely post
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